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________________ व्याध्यान क्षरित्यक्ष-साथ १ले. आपका बैनाया व्या. सा. सं. पु. मिला. पुस्तक लायक तारीफके है. समय के मुताबिक इस चीज की जरुरत है. श्रीमान् श्रीवल्लभविजयजी महाराजजीके शिष्य, मुनि ललितविजयजी महाराज, मुंबई. પાલ महात्मन् ! आपने जिस परिश्रमसे " व्याख्यान साहित्यसंग्रह " लिखा है उस परिश्रमके लिये साहित्यप्रेमी आजन्मके लिये आपके परिपूर्ण ऋणी होचुके हैं. “व्याख्यानसाहित्यसंग्रह " के सम्बंध में आपका अभिप्राय देनेके बदले में मैं तो आपके स्तुत्य प्रयासको देखकरही वारंवार चकित होता हूं और साहित्यप्रेमीयोंसे आग्रह करता हूं कि यदि आप लोगोंको सैंकडो शास्त्रोंके कर्ताओंकी कृतिका दिग्दर्शन करना हो तो “व्याख्यानसाहित्यसंग्रह " ग्रंथको मंगाकर अपने बाह्यरकी और अन्तरघटकी शोभा बढाइएं । महात्मन् आपके ग्रंथी तारीफ लिखनेके लिए मेरा मन बडा असंतोषी है. कृपया क्षमा कीजिए क्योंकि वे शब्दही नहीं मिलते जिनसे कुछ लिखकर संतोष पकड़ें ? श्रीमान् श्रीवल्लभविजयजी महाराजजी के शिष्य, विमळविजय महाराज, सुरत. મુનિરાજ શ્રીવિનયવિજયજીકૃત વ્યાખ્યાનસાહિત્યસ’ગ્રહ ગ્રંથ ણાજ ઉત્તમ વાંચવા લાયક છે તેની અંદર વિષયા ધણા શ્રમપૂર્વક ગોઢવેલા છે. પૂર્વાચાકૃત ગ્રંથાને અનુસરીને આ ગ્રંથ પણ એક નમુનારૂપ છે. આત્માર્થી જીવાને તેની અંદર આવેલા વિષયેા ઉપકાર કરવાવાળા છે માટે સર્વ ભાઈઓએ આ ગ્રંથ આદ્યત અવગાહન કરવા-મનન કર! એવી મારી ખાસ ભલામણ છે. સ્વર્ગાસ્થ શ્રીમુક્તિવિજયજી “भूजयंहलु” गणिक महाराजांना शिष्य, પુન્યાસજી શ્રીકમળવિજયજી મહારાજ, वहश
SR No.006062
Book TitleVyakhyan Sahitya Sangraha Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVinayvijay
PublisherDevji Damji Sheth
Publication Year1916
Total Pages646
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati
File Size15 MB
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