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________________ मिच्छामी दुक्कडम् मित्रों, 'मिच्छामी दुक्कडम्' अर्थात आपस में क्षमा माँगना व देना। जैन धर्म का यह एक अत्यंत विशेष पहलू है। वैसे अन्य धर्मों में भी इस प्रथा का प्रतिरुप है - उदाहरण के लिए हिन्दू धर्म में होली' का त्यौहार या मुस्लिम भाइयों का ईद का त्यौहार और २९ सितंबर का समस्त विश्व में 'क्षमा दिवस' के रुप में मनाया जाना। इस प्रथा के पीछे मूल भावना हर जीव-मात्र से क्षमा माँगना है, जिसे हमने मन, वचन या कर्म से किसी भी प्रकार का दुःख पहुँचाया हो। ___मैं भी आज यहाँ मिच्छामी दुक्कडम् कहता हूँ - सिर्फ मेरी तरफ से नहीं, किंतु उन सभी की ओर से भी जो क्षमापना हेतु आज यहाँ नहीं पहुंच पाये हैं। * मैं मिच्छामी टुक्कडम् कहता हूँ उन विकास के दिवानों की ओर से, विकास प्रक्रिया की बली चढ़े हुए सभी को - पर्यावरण को, 'प्रदूषित नदियों को, लुप्त होते हुए पहाड़ों को, क्षय होती हुई हर प्राकृतिक संपदा को, उजड़े हुए आदिवासियों को, डूबी हुई धरती माता को और किनारे कर दिये गये उन करोड़ों मानवों को जो विकास की चकाचौंध से हतप्रभ होकर विकास की वेदी पर उनकी बली चढ़ाये जाने के इंतजार में हैं ! * मैं मिच्छामी दुक्कडम् कहता हूँ समस्त मानव जाति की ओर से, जिसे परमात्मा ने शाकाहारी जीव बनाया, उन सभी मूक और - अबोल पशुओं, पक्षियों आदि जीवों को जिन्होंने मानव की जीभ के स्वाद को संतुष्ट करने के लिए मृत्यु को स्वीकार किया ! * मैं मिच्छामी दुक्कडम् कहता हूँ इस देश के आयोजकों की ओर से, उन सभी जीवात्माओं को, जिनकी कत्ल के लिए विशाल दैत्यकाय बूचड़खानों का इस देश में आयोजन किया गया - एक के बाद एक हर पंचवर्षीय योजना में, और जिन्होंने हमारी अर्थव्यवस्था के केन्द्र से हमारे अमूल्य पशुधन को अलग हटाकर उसके स्थान पर दैत्याकार मशीनों को प्रस्थापित कर दिया, जो सिर्फ हिंसा व शोषण के आधार पर ही टिक सकती हैं ! || * मैं मिच्छामी दुक्कडम् कहता हूँ इस राष्ट्र के वित्त नियोजकों की ओर से, जिनको कोई फर्क नहीं पड़ता उस बात से कि जिस विदेशी मुद्रा को कमाने के लिए वे दिवाने हैं, वह निर्दोष जीवों के लहू और माँस से लिपटी है ! * मैं मिच्छामी दुक्कडम् कहता हूँ इस देश के विधायकों की ओर से, जो जीव-सृष्टि की हत्या जैसे घृणित कार्य को सिर्फ कानूनन स्वीकृत कार्य ही नहीं बनाते, उसे मूलभूत अधिकार का दरज्जा भी देते हैं ! * मैं मिच्छामी दुक्कडम् कहता हूँ इस देश की न्याय प्रणालिका की ओर से, जो जीवित प्राणियों-पशुओंको आर्थिक रुप से अनुपयुक्त, अनुपयोगी करार देती हैं और उन्हें मृत्युदंड देती है; करुणा बरतने का सांवैधानिक कर्तव्य होने के बावजूद ! * मैं मिच्छामी दुक्कडम् कहता हूँ इस देश के प्रसार-तंत्र की ओर से, जो अपने चिकने चमकते पन्नों पर उन स्वादिष्ट व्यंजनों के पकाने की विधी छापते हैं, जिसके लिए मूक व निर्दोष जीव बली चढ़ते हैं ! * मैं मिच्छामी दुक्कडम् कहता हूँ उन शिक्षा-विदों, वैज्ञानिकों, पोषण विशेषज्ञों की ओर से, जो हमारे छोटे छोटे बच्चों को प्राणीज प्रोटीन की महत्ता पढ़ाते हैं और सात्विक आहार के गुणों को जानबूझ कर छिपाते हैं ! * मैं मिच्छामी टुक्कडम् कहता हूँ उन तथाकथित पशु-पालन वैज्ञानिकों की ओर से, जो भारत की उमदा दुधारु तथा अन्य पशुजातियों के आमूल उच्छेदन में साधन बन रहे हैं ! * और अंत में मैं मिच्छामी दुक्कडम् कहता हूँ अपनी ओर से - उपरोक्त सभी बातों के खिलाफ पूर्ण सफलतापूर्वक विरोध न कर पाने के लिए! प्रस्तुतकर्ता : प्रेषक: विनियोग परिवार / वर्धमान संस्कृतिधाम फोन : ८०७७७८१ / ३८८७६३७
SR No.006035
Book TitleViniyog Parivar Dwara Prakashit Lekh Samput
Original Sutra AuthorN/A
AuthorViniyog Parivar
PublisherViniyog Parivar
Publication Year
Total Pages80
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati
File Size10 MB
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