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७) गुरुतत्त्वविनिश्चय-निश्चय और व्यवहार नय से सद्गुरु और कुगुरु के स्वरूप का प्रतिपादन इस ग्रन्थ में है।
८) ज्ञानार्णव-मति-श्रुत-अवधि-मनःपर्यव तथा केवलज्ञान इन पांचो ज्ञान के स्वरूप का विस्तृत प्रतिपादन ।
९) द्वात्रिंशद्वात्रिंशिका–३२ श्लोकपरिमाण ३२ प्रकरणों में षोडशक-योगदृष्टि०- योगबिन्दु आदि ग्रन्थों के विविध विषयों का इस में निरूपण किया गया है।
१०) धर्मपरीक्षा-उपा० धर्मसागरजी के 'उत्सूत्रभाषी नियमा अनन्तसंसारी होते हैं' इत्यादि अनेक उत्सूत्रप्रतिपादन का इस में निराकरण है।
११) नयोपदेश-नैगमादि ७ नयों पर इस ग्रन्य में श्रेष्ठकोटि का विवरण उपलब्ध है।
१२) महावीरस्तव-न्यायखण्डखाद्यटीका-बौद्ध और नैयायिक के एकान्तवाद का इस ग्रन्थ में निरसन किया है।
१३) प्रतिमाशतक-भगवान के स्थापनानिक्षेप की पूज्यता को न मानने वाले का निरसन कर मूर्तिपूजा की कल्याणकरता इस में वर्णित है।
१४) भाषारहस्य-प्रज्ञापनादि उपाङ्ग में प्रतिपादित भाषा के अनेक भेद-प्रभेदों का इस में विस्तृत वर्णन है। .
१५) सामाचारीप्रकरण-इच्छा-मिथ्यादि दशविध साघुसामाचारी का इस ग्रन्थ में तर्कशली से स्पष्टीकरण है।
-: अन्यकर्तृकग्रन्थ की उपलब्ध टीकाएँ :१) उत्पादादिसिद्धि-(मूलक -चन्द्रसरि)-इस ग्रन्थ में जैनदर्शनशास्त्रों के अनुसार सत् के उत्पादव्ययध्रौव्यात्मक लक्षण पर विशद प्रकाश डाला गया है- उपाध्यायजी विरचित टीका पूर्ण उपलब्ध नहीं हो रही हैं।
२) कम्मपयडि बृहद् टीका-(मूलक -शिवशर्मसूरि)-जैनदर्शन का महत्त्व का विषय कर्म के 'बन्धनादि' विविध करणों पर विवरणात्मक टीका है।
३) कम्मपयडि लघुटीका-इस टीका का प्रारम्भिक पत्र मात्र उपलब्ध होता है।
४) तत्त्वार्थसूत्र (प्रथम अध्याय मात्र) टीका-(मृ०-वा० उमास्वाति) इस टीका ग्रन्थ में निक्षेप-नय-प्रमाणादितत्वों का रहस्य प्रकाश में लाया गया है।।
५) योगविंशिका टीका-इस में श्री हरिभद्रसूरि विरचित विंशतिविंशिका-अन्तर्गत योगविंशिका की विशद व्याख्या हैं- इस में स्थान-उर्ण-अर्थ आलम्बन और निरालम्स पाँच प्रकार के योग का विशद निरूपण किया गया है ।
६) स्तवपरिज्ञाअवचूरि-द्रव्य-भाव स्तव का स्वरूप संक्षेप से इस में स्फुट किया गया है।
७) स्याद्वादरहस्य-वीतरागस्तोत्र के आठवे प्रकाश के उत्तरोत्तर लघु-मध्यम और उत्कृष्ट परिमाण-तीन टीकात्मक इस ग्रन्थ में स्याद्वाद का सूक्ष्म रहस्य प्रकट किया गया है।
८) स्याद्वादकल्पलता--आ० हरिभद्रसूरि विरचित-शास्त्रवार्तासमुच्चय ग्रन्थ की नव्यन्याय में विस्तृत व्याख्या, जिसमें विविध दार्शनिक सिद्धान्तों की विशद मीमांसा की गयी है।