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________________ * पुदगल-द्रव्य की पर्याय - सहो बंधो मुहुमो धूलो संठाणभेदतमछाया । • . उज्जोदादवसहिया पुग्गलदव्यस्स पञ्जाया ॥ १६ ॥ शब्दः बन्धः सूक्ष्मः स्थूलः संस्थानभेदतमश्छायाः । उद्योतातपसहिताः पुद्गलद्रव्यस्य पर्यायाः ॥ १६ ।। टूटन-फूटन रूप भेद औ सूक्ष्म-स्थूलता आकृतियाँ, श्रवणेन्द्रिय के विषय-शब्द भी प्रतिछवि छाया या कृतियाँ । चन्द्र, चाँदनी, रवि का आतप अन्धकार आदिक समझो, 'पुद्गल की ये पर्यायें हैं पर्यावों में मत उलझो ॥ १६ ॥ [सहो] २०६, [बंधो] बंध, [मुहुमो] सूक्ष्म, [थूलो स्थूग, [संठाण] भास२, भेद 3 ), तिम) भंडार, [छाया] स्या, [उज्जोद] उधोत. [आदव-सहिया] भने माता सहित [पुग्गल-दव्वस्स] पुगत दयनी [पञ्जाया] पायो छे. शब्द, बन्ध, सूक्ष्म, स्थूल, संस्थान, भेद, तम, छाया, उद्योत और आतप सहित सब पुद्गल द्रव्य की पर्यायें हैं ।। १६ ॥ Sound, union', fineness, grossness, shape, division, darkness, image, Atapa and udhyota are modifications of the substance known as Pudgala. *धर्म-द्रव्य का स्वरूप गइपरिणयाण धम्मो पुग्गलजीवाणं गमणसहयारी । तोयं जह. पच्छाणं अच्छंताणेव सो णेई ॥ १७ ॥ गतिपरिणतानां धर्मः पुद्गलजीवानां गमनसहकारी ! तोयं यथा मत्स्यानां अगच्छतां नैव सः नयति ।। १७ ॥ गमन-कार्य में निरत रहे जब जीव तथा पुद्गल-भाई, 'धर्म-द्रव्य' तब बने सहायक प्रेरक बनता पर नाही । मीन तैरती सरवर में जब जल बनता तब सहयोगी, रुकी मीन को गति न दिलाता उदासीन भर हो, योगी ! ॥ १७ ॥ [जह] ठेवी 2 [गइपरिणयाण [मच्छाणं] Huelोने [गमणसहयारी] अमन थामी साय [तोय) पी थाप छ [तह तवा शत. [गइपरिणयाण] गति ४२ पुग्गलीवाण] ® भने पुरखने [गमणसहयारी] मन (यालामi) ४२वामा सय [धम्मो] दिव्य छ, पर [सो] ते पदव्य [अच्छंता] याने (04-पुहबने) (णेव णेइ) यातुं नयी गमन में परिणत पुद्गल और जीवों को गमन में सहकारी धर्मद्रव्य है, जैसे जल मछलियों को गमन में सहकारी है। गमन करते हुए यानी - ठहरे हुए पुद्गल और जीवों को धर्मद्रव्य गमन नहीं कराता ।। १७ ॥ 1. Bondage 2. Heat & light caused by sun. 3. Light resulting from the moon, fire-fiy, jewel...etc. things which are not hot or without heat. As water assists the movement of moving fish, Dharma assists the movement of moving Jiva and Pudgala. But it does not move Jiva and Pudgala which are not moving. जित-इन्द्रिय जित-मद बने, जित-भव विजिंत-कषाय । अजित-नाथ को नित नमू, अर्जित दुरित पलाय ॥ .
SR No.005954
Book TitleDravya Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichandra Acharya, Vidyasagar Maharaj, Kishor Khandhar
PublisherSamtaben Khandhar Charitable Trust
Publication Year
Total Pages30
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati
File Size4 MB
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