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* चौदह जीवसमास
समणा अमणा णेया पंचिंदिय णिम्मणा परे सब्बे । बादरसुहमेइंदी सव्वे पनत्त इदरा य ॥ १२ ॥ समनस्काः अमनस्काः ज्ञेयाः पञ्चेन्द्रियाः निर्मनस्काः परे सर्वे । बादरसूक्ष्मैकेन्द्रियाः सर्वे पर्याप्ताः इतरे च ।। १२ ।। द्विविध रहे हैं 'पञ्चेन्द्रिय' भी रहित-मना औ सहित-मना, शेष जीव सब रहित मना हैं कहते इस विध विजित-मैना। स्थावर, बादर-सूक्ष्स द्विविध हैं, दुख से पीडित हैं भारी, फिर सब ये पर्याप्त तथा हैं पयतितर संसारी ।। १२ ।।
[पंचिंदिय] पयन्द्रिय ®d [समणा] संsa (भन सरित.) भने [आमणा) Mislu (भनलित) [णेया] वामे [परे] शेष [सबे] बधा (Sal) [णिम्मणा] संजी. [णेया] वा; तमi [एइंदि] इन्द्रिय ®4 [बादरसुहमा बा६२ भने सूक्ष्म अम न छ. सिव्वे] भने बधा [पज्जत्त] / [इदरा य] भने अपाय छे.
पंचेन्द्रिय जीव संज्ञी और असंज्ञी ऐसे दो तरह के जानने चाहिये शेष सब (एकेन्द्रिय, दो-इन्द्रिय, ते-इन्द्रिय, चौ-इन्द्रिय) जीव मनरहित असंज्ञीं हैं । एकेन्द्रिय जीव बादर और सूक्ष्म दो प्रकार के हैं। और ये सातों जीव पर्याप्त तथा अपर्याप्त होते हैं। इस तरह जीवसमास १४ हैं ।। १२ ।।
Jivas possessing five senses are known to be divided into Samana' and Amana. All the rest are Amana. Jivas. having one sense are divided into two classes Badara and Suksama. All of these Jivas are seen to be Paryapta and Aparyapta.' 1. Samana - Sanjni, those having mind..2.-Asanjni, those
without mind. 3. Gross, visible through naked eyes. 4. Subtle, not visible through naked eyes. 5. One who will complete his requirements. 6. One who will not complete his requirements.
* मार्गणा और गुणस्थानकी अपेक्षा जीव के भेद मगणगुणठाणेहि य चउवसहि हवंति तह असुद्धणया । विण्णेया संसारी सबे सुद्धा हु सुद्धणया ॥ १३ ॥ मार्गणागुणस्थानैः च चतुर्दशभिः भवन्ति तथा अशुद्धनयात् । विज्ञेयाः संसारिणः सर्वे शुद्धाः खलु शुद्धनयात् ॥ १३ ॥ तथा मार्गणाओं में चौदह गुणथानों में मिलते हैं,
अशुद्ध-नय से प्राणी-भव में युगों-युगों से फिरते हैं। 'किन्तु सिद्ध-सम विशुद्ध-तम हैं सभी जीव ये अधिकारी, विशुद्ध-नय का विषय यही है विषय त्याग दे अधकारी ॥ १३ ॥
[तह तथा [संसारी] संरी 4 [असुद्धणया] अशुद्धनयथा (4ववारनयची) [मग्गणगुणठाणेहि य] भास्थान, भने स्थाननी अपेक्षाची [चउदसहि यौह शौहरन हिवंत छ. [सुद्धणया] शुद्ध निश्चयनयथा [सव्वे] 4 4 ह] नियमथा. [सुद्ध] शुद्ध विण्णेया] यावा.
संसारी जीव अशुद्धनय की दृष्टि से चौदह मार्गणा तथा चौदह गुणस्थानों से चौदह-चौदह प्रकार के होते हैं और शुद्धनय से सभी संसारी जीव शुद्ध हैं ॥ १३ ॥
Again according to impure (Vyavahara) Naya Samsari Jivas are of fourteen kinds according to Margana? and Gunasthana'. According to pure (Nischaya) Naya all Jivas should be understood to be
pure.
1. Unliberated. 2. States or conditions in which Jivas are
found. 3. The gradual Stages of development of soul with reference to delusion and yoga (activity).