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* जीव का प्रमाण अणुगुरुदेहपमाणो उपसंहारप्पसप्पदो चेदा । असनुहदो ववहारा णिच्छयणयदो असंखदेसो वा ॥ १०॥
अणुगुरुदेहप्रमाणः उपसंहारप्रसर्पतः चेतयिता ।
। असमुद्घातात् व्यवहारात् निश्चयनयतः असंख्यदेशो वा ।। १०॥ समुद्घात बिन सिकुडन-प्रसरण स्वभाव को जो धार रहा, लघु-गुरु तन के प्रमाण होता 'जीव' यही व्यवहार रहा । स्वभाव से तो जीवात्मा में असंख्यात-परदेश रहे, निश्चव-नय का यही कथन है सन्तों के उपदेश रहे ||.१०॥ ( [चेदा] आत्मा [ववहारा] व्यवनयी [असमुहदो] समुधात . भवस्थाने छोडने अन्य अवस्थामामा [उवसंहारप्पसप्पदो] सय भने. विस्तार ॥२. [अणुगुरुदेहपमाणो] नाना-मो शरीर माम. छ; [वा] भने, णिच्छयणयदो] नियनयथा [असंखदेसो] संन्यात प्रशिवाको
* जीव के भेद
पुढविजलतेयवाऊ वणफदी विविहथावरेइंदी । विगतिगचदुपंचक्खा तसजीवा होति संखावी ॥११॥ पृथिवीजलतेजोवायुवनस्पतयः विविधस्थावरैकेन्द्रियाः । .. द्विकत्रिकचतुःपञ्चाक्षाः त्रसजीवाः भवन्ति शंखादयः ।। ११ ॥ पृथवी-जल-अंगनी-कायिक औ वायु-वृक्ष-कायिक सारे, बहुविध 'स्थावर' कहलाते हैं मात्र एक-इन्द्रिय धारे । द्वय-तिय-चउ-पथेन्द्रिय-धारक त्रस-कायिक' प्राणी जाने, भव-सागर में भ्रमण कर रहे कीट-पतंगे मन माने ॥ ११॥
[पुढविजलतेयवाऊवणफदी] पृथ्वीय, ४६., भानिय, वायु.१५ भने वनस्पतिय विविहथावरेइंदि] भने २- स्थावर मरन्द्रय ®® अने[सखादि] शंाहि [विगतिगचदुपंचक्खा बन्द्रय, तन्द्रिय, यौन्द्रिय भने पंथन्द्रिय [तसजीवा] १२१. 4. [होंति] डाय छ.. .
पृथिवी, जल, अग्नि, वायु और वनस्पति इन भेदों से नाना प्रकार के स्थावर जीव हैं और ये सब एक स्पर्शन इन्द्रिय के ही धारक हैं, तथा शंख आदि दो, तीन, चार और पाँच इन्द्रियों के धारक त्रसजीव होते हैं ॥ ११ ॥
The earth, water, fire, air and plants are various kinds of sthavara' possessed of one sense (i.e. touch) and conches... etc. are Trasa Jivas, are possessed of two, three, four and five senses.
समुद्रघात के बिना यह जीव व्यवहार-नय से संकोच तथा विस्तार से अपने छोटे और बड़े शरीर के प्रमाण रहता है और निश्चयनय से असंख्यात प्रदेशों का धारक है ।। १०॥
According to Vyavahara Naya, the conscious Jiva, being without Samudghata (the exit of Jiva from the body to another form, without leaving the original body altogether), becomes equal in extent to a small or a large body, by its ability of contraction and expansion; but according to Nischaya Naya (it) is existent in innumerable Pradesas'.
1. That portion of Akasa which is occupied by one indivisible
atom).
1. Immobile, not capable of spontaneous movement in case
of trouble... etc. 2 Mobile, capable of spontaneous . movement in case of trouble...etc.