________________
* जीव का कर्तृत्व पुग्गलकम्मादीणं कत्ता ववहारयो दुणिच्छयदो। चेवणकम्माणादा सुद्धणया सुद्धभावाणं ॥८॥ पुद्गलकर्मादीनां कर्ता व्यवहारतः तु निश्चयतः । चेतनकर्मणां आत्मा शुद्धनयात् शुद्धभावानाम् ॥ ८॥ पुदगल कर्मादिक का कर्ता जीव रहा व्यवहार रहा, रागादिक चेतन का कर्ता अशुद्ध-नय से क्षार रहा। विशुद्ध-नय से शुद्ध-भावका कर्ता कहते सन्त सभी, शुद्ध-भाव का स्वागत कर लो, कर लो भव का अन्त अभी ॥८॥
[आदा] भामा विवहारदो] यानयथा पुग्गलकम्मादीणं] (IनIReule) पुरानो [कत्ता] sol छ, णिच्छयदो] (शुद्ध) निशयनयी दिंदणकम्माणं] (Aue भा454) येतनभान छे. [६] भने [सुद्धणया] शुद्ध (निश्चय) नयी सुद्धभावाणं] (शुद्ध જ્ઞાન-દર્શનાદિ) શુદ્ર ભાવોનો કતાં છે.
आत्मा व्यवहारनयसे पुद्गल कर्म आदि का कर्ता है, निश्चयनयसे चेतनकर्म का कर्ता है और शुद्धनय की अपेक्षा से शुद्ध भावों का कर्ता है ।। ८॥
According to Vyavahara Naya Jiva is the doer of the Pudgala Karmas. According to Nischaya Naya' (Jiva is the doer of) Thought Karmas. Accordirg to Suddha Naya Jiva is the doer of Suddha Bhavas
* जीव का भोक्तृत्व यवहारा सुहदुक्खं पुग्गलकर्मफलं पभुंजेदि । आदा णिच्छयणयदो चेदणभावं खु आवस्स ॥९॥ व्यवहारात् सुखदुःखं पुद्गलकर्मफलं प्रभुङ्क्ते ।। आत्मा निश्चयनयतः चेतनभावं खलु आत्मनः ॥ ९ ॥ आतम को कृत-कर्मों का फल सुख-दुख मिलता रहता है, जिसका वह व्यवहार-भाव से भोक्ता बनता रहता है। किन्तु निजी शुचि चंतन-भावों का भोक्ता यह आतम है, निश्चय-नय की यही द्रष्टि है कहता यूँ परमागम है॥१॥
[आदाभात्मा [ववहारा] व्यपारनयी [सुडदुक्खं] सुम-६५३५ [पुग्गलकम्मफलं] पुस भनु म [प जेदि] लोग छ भने [णिच्छयणयदो]. शयनयी [आदस्स] पोतन [चेदणभावं] (LENन३५) यतन्यमयने खु] लयमयी [प जेदि] लोग छ.:
।
व्यवहार नयसे आत्मा सुख दुःखरूप पुद्गल कर्मों को भोगता है और निश्चयनय से अपने चेतन स्वभाव को भोगता है ।। ९॥ ..
According to Vyavahara Naya, Jiva enjoys happiness and misery the fruits of Pudgal Karmas. According to Nischaya Naya, Jiva has conscious Bhavas Only.
1. Suddha Jnana, Suddha Darshana...etc.
शरण, चरण हैं आपके, तारण तरण जहाज । भव-दधि-तट तक ले चलो, करुणाकर जिनराज ||
1. Impure Nischaya Naya 2. Attachment, aversion etc. 3.
Suddha Jnana, Suddha Darshana etc..