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________________ * नय- विवक्षासे जीव का पुनः लक्षण अटूट चतु णाणदंसण सामण्णं जीवलक्खणं भणियं । बबहारा सुद्धणया सुद्धं पुण दंसणं णाणं ॥ ६ ॥ अष्ट चतुर्ज्ञानदर्शने सामान्यं जीवलक्षणं भणितम् । - व्यवहारात् शुद्धनयात् शुद्धं पुनः दर्शनं ज्ञानम् ॥ ६ आम का साधारण लक्षण वसु-चउ-विध उपयोग रहा, गीत रहा व्यवहार गा रहा सुनो ! जरा उपयोग लगा । किन्तु शुद्ध-नय के नयनों में शुद्ध-ज्ञान-दर्शन वाला, आतम प्रतिभासित होता है बुध-मुनि-मन हर्षणहारा ॥ ६ ॥ [ववहारा] व्यवहारनयथी [अट्ठचदुणाणदंसण] 2016 प्रहार ज्ञान अने या प्रकार हर्शन [सामण्णं] सामान्यथी [जीवलक्खणं] वनुं सक्ष [भणि] वायां खायुं छे. [पुण] भने [सुद्धणया] शुद्ध निश्चयनयथी [सुद्ध] शुद्ध [दंसणं गाणं] ६र्शन भने ज्ञान [जीवलक्खणंभणियं] वनं લક્ષણ કહેવામાં આવ્યું છે. व्यवहार नयसे आठ प्रकार के ज्ञान और चार प्रकार के दर्शन का जो धारक है वह सामान्य रूप से जीव का लक्षण है, और शुद्धनय की अपेक्षा जो शुद्ध ज्ञान दर्शन है वह जीव का लक्षण कहा गया है। According to Vyavahara Naya, the general characteristics of Jiva are said to be eight kinds of Jnana and four kind of Darshana'. But according to Suddha Naya, (the characteristic of Jiva) are pure Jnana and Darshana. * 1. Knowledge having eight facets & Darshana having four facets is the interpretion of Vyavahara Naya. 2. Suddha Nischay Naya. * जीव का मूर्तिक और अमूर्तिक रूप यण रस पंच गंधा दो फासा अटूट णिच्छया जीवे । णो संति अमुत्ति तदो ववहारा मुत्ति बंधादो ॥ ७ ॥ वर्णाः रसाः पंच गन्धौ द्वौ स्पर्शाः अष्टथै निश्चयात् जीवे । नो सन्ति अमूर्तिः ततः व्यवहारात् मूर्ति बन्धतः ॥ ७ ॥ पञ्च रूप, रस पञ्च, गन्ध दो, आठ-स्पर्श, सब ये जिन में, होते ना हैं, 'जीव' वही है कथन किया है यूँ जिन-ने । इसीलिए हैं जीव अमूर्तिक निश्चय-नय ने माना है, जीव, मूर्त व्यवहार बताता कर्मबन्ध का बाना है ॥ ७ ॥ [[णिच्छया] निश्चयनयथी [जीवे] वभi [वण्ण रस पंच] पांथ व पायरस [गंधा दो] जे. गंध भने [फासा अट्ठ] आठ स्पर्श [णो संति] होता नथी [तदो] तेथी [अमुत्ति] अमूर्ति छे [ववहारां] व्यवहारनयथी [बंधादो] उर्भबंधी अपेक्षा [मुत्ति]वं भूर्ति छे. निश्चय नय से जीव में पांच वर्ण, पांच रस, दो गन्ध और आठ स्पर्श नहीं हैं, इसलिये जीव अमूर्तिक है और व्यवहार नयकी अपेक्षा कर्म-बंध होने के कारण जीव मूर्तिक है |! ७ ॥ According to Nischaya Naya, Jiva is without form, because the five kinds of colour and taste, two kinds of smell, and eight kinds of touch are not present in it. But according to Vyavahara Naya [Jiva] has form through the bondage (of Karma ). * आदिम तीर्थंकर प्रभो, आदिनाथ मुनिनाथ । आधि व्याधि अघ मद मिटे, तुम पदमें मम माथ ॥
SR No.005954
Book TitleDravya Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichandra Acharya, Vidyasagar Maharaj, Kishor Khandhar
PublisherSamtaben Khandhar Charitable Trust
Publication Year
Total Pages30
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati
File Size4 MB
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