________________ मंगलभावना * ग्रन्थकार की प्रार्थना दव्यसंगहमिणं मुणिणाहा दोससंचयधुदा युएपुग्णा। सोधयंतु तणुसुत्तपरेण पोमिचंदमुपिणा भणियं // 58 // द्रव्यसंग्रहं इस मुनिनाथाः दोषसंचयच्युताः श्रुतपूर्णाः / / शोधयन्तु तनुश्रुतधरेण नेमिचन्द्रमुनिना मणितं यत् // 58 / / बिन्दु-मात्र श्रुत का धारक हूँ पार सिन्धु का का पाता? "नेमिचन्द्र" नामक मुनि, मुझसे लिखा "द्रव्य-संग्रह" साता / दूर हुये दोषों से कोसों श्रुत-कोशों से पूर हुये, शोधे वे "आचार्य" इसे यदि भाव यहाँ प्रतिकूल हुये // 58 // तणुसुत्तधरेण] अल्पशानन पार [णेमिचंदमुणिणा] नेमियन्द्र मुनि जिं] [इणं दव्यसंगहं] मा UAHANIमन च [भणियं] हो छ, त. [सुदपुण्णा] unu Auru (श्रुतानमा पू) [दोससंचयचुदा] होना समूडा २त, मेवा [मुणिणाहा] मुनि (मुनिमोन स्वामी) [सोधयंतु] शुद्ध 50. अल्पज्ञान के धारक मुझ नेमिचन्द्र मुनि ने जो यह द्रव्यसंग्रह कहा है इसको : दोषों से रहित और ज्ञान से पूर्ण ऐसे आचार्य शुद्ध करें / / 58 // मेरा तेरा-पन मिटे, भेद-भाव का नाश / रीति-नीति सुधरे सभी, येव-भाव में वास // भाग्य भला वह क्या रहा, उदय कर्म का मात्र / यहां देख मत, देख ले, जहां धर्म का पात्र // 2 // नातो पर पर रोष हो, ना कर्मों का दोष। है अपना अपराध यह, खोया है निज-होश // 3 // सदा सरलता साथ लो, और कुटिलता त्याग / बनो धवल तुम हंस से, विरागता से राग // 4 // काले बादल बन, तपी-भूपर बरसो आप / भरे पाप-घट पुण्य में, बदले अपने आप // 5 // लाभ उलटता हो भला, भला. उलटता लाभ / हो सब ज्यों का त्यों सदा, भले रहे बदलाय // 6 // स्थान एवं समय परिचय मुक्तागिरि पर मुक्त मुनि, साढे तीन करोड़ / मुक्तागिरि को नित नमूं, नत-सिर हो कर-जोड़ // 7 // "स्वर-आतम-रस-गन्ध का, अक्षय-तृतीया योग / / .. पूर्ण हुआ अनुवाद यह, देता ध्रुव-आलोक // 8 // Let the great sages, full of the knowledge of sastras (scriptures) and freed from the collection of faults, correct this Dravya-samgraha which is spoken by the sage Nemichandra who has little knowledge of the sastras. (In this last verse, the author, Nemichandra Muni, in all humility belittles himself and acknowledging that there may be faults in his work, requests the great sages to correct the same). *7-1-5-2 'आहाना वामतो गतिः' के अनुसार वीर निर्वाण संवत 2517 अक्षय तृतीया ..