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* अरहंत परमेष्ठी का स्वरूप
णट्ठचदुघाइकम्मो दंसणसुहणाणवीरियमईओ । सुहदेहत्थो अप्पा सुद्धो अरिहो विचितिजो ॥ ५० ॥
नष्टचतुर्घातिकर्मा दर्शनसुखज्ञानवीर्यमयः । शुभदेहस्थः आत्मा शुद्धः अर्हन् विचिन्तनीयः ॥ ५० ॥
धाति-कर्म च समाप्त करके शुद्ध हुये जो, आप्त हुये, अनन्त-दर्शन, अनन्त-सुख-बल पूर्ण ज्ञान को प्राप्त हुये । परमीदारिक तन धारक हो परम पूज्य "अरहन्त" हुये, इन्हें बनाओ "ध्येय" ध्यान में जय ! जय ! जय ! जयवन्त हुये ॥ ५० ॥
[णट्टचदुघाइकम्पो] भेजे यार प्रहारना घाती भनो नाश क्यों छे, [दंसणसुहणाणवीरियमईओ] के (अनंत) दर्शन, सुज, ज्ञान भने तीर्थ सहित छे, [सुहदेहत्थों] शुभ हेड (सात धातु रहित परमौहारिक शरीर )भां रहेआ छे [सुद्धो] ते शुद्ध (१८ छोष रहित ) [ अप्पा ] आत्मा [अरिहो] अरिहंत छे अने ते [विचितिजो] ध्यान उरवा योग्य छे.
चार घातिया कर्मों को नष्ट करनेवाला, अनन्त दर्शन, सुख, ज्ञान और दीर्घ का धारक, उत्तम देह में विराजमान और शुद्ध-आत्मा 'अरिहंत' है, उसका ध्यान करना चाहिये ॥ ५० ॥
That pure soul existing in an auspicious body, possessed of (infinite) faith, happiness, knowledge and power, which has destroyed the four Ghatiya karmas' is to be meditated on as an Arhat.
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1. Karmas like Jnanavarniya...etc. which directly obstructs the menifestations of the quality of the soul like perfect Jnana...etc. 2. Arihant.
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* सिद्ध परमेष्ठी का स्वरूप
ठठकम्भदेहो लोयालोयस्स जाणओ दट्ठा । पुरिसायारो अप्पा सिद्धो झाएह लोयसिहरत्थो ॥ ५१ ॥
नष्टाष्टकर्मदेहः लोकालोकस्य ज्ञायकः द्रष्टा । पुरुषाकारः आत्मा सिद्धः ध्यायेत लोकशिखरस्थः ॥ ५१ ॥
लोक-शिखर पर निवास करते तीन-लोक के नायक हैं.. लोकालोकाकाश तत्त्व के केवल दर्शक-ज्ञायक हैं। पुरुषरूप आकार लिए हैं "सिद्धातम" हैं कहलाते, स्व-तन-कर्म को नष्ट किये हैं ध्यावें उनको हम तातें ॥ ५१ ॥
[णट्ठट्ठकम्मदेहो ] भेरे (ज्ञानावरसहि) २४ કર્મો અને (औधारिहाधि) पाय शरीरनो नाश उर्यो छे [लोयालोवस्स] सोड-दोनां [जाणओ दट्ठा] भवा अने जवावाणा छे [पुरिसायारो] पुरुषना खारे [लोयसिहरत्यो] सोनां शिजर पर स्थित [ अप्पा ] आत्मा [सिद्धो] सिद्ध परमात्मा छे, तेनुं [झाएह] ध्यान २ २६२२.
नष्ट हो गया है अष्टकर्मरूप देह जिसके लोकाकाश तथा अलोकाकाश को जानने देखनेवाला, पुरुष के आकारवाला और लोक के शिखर पर विराजमान ऐसा आत्मा सिद्ध परमेष्ठी है, इस कारण तुम सब उस 'सिद्ध' का ध्यान करो ।। ५१ ।।
Meditate on the Siddha-the soul which is bereft of the bodies produced by eight kinds of Karmas, which is the seer and knower of Loka and Aloka, which has a shape like a human being and which stays at the summit of the Loka.
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