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________________ * ध्यान करने का उपाय . मा मुज्ाह मा रजह मा दूसंह इट्ठणिठ्ठअट्ठेसु। थिरमिच्छहि जइ चित्तं विचित्तझाणप्पसिद्धीए ॥ ४८॥ मा मुहात मा रज्यत मा द्विष्यत इथनिष्टार्थेषु । . स्थिरं इच्छत यदि चित्तं विचित्रध्यानप्रसिद्ध्यै ।। ४८ ॥ शुद्धातम के सहज ध्यान में होना जब है तलीना. चञ्चल मन को अविचल करना चाहो यदि निज-आधीना । मोह करो मत, राग करो मत, द्वेष करो मत, तुम तन में, इष्ट रहे कुछ, अनिष्ट भी हैं पदार्थ मिलते त्रिभुवन में ॥ ४८ ॥ विचित्तझाणणसिद्धीए वियित्र भात अन १२-यानी शिद भाट [जइ हो चित्तं चित्तने थिरं] स्थिर ४२वा [इच्छहि] २७ d [इणिठ्ठअढेसु) ' मने भनिट पोंभ [मा मुज्झह भो s, [मा रजह] नये, [मा दूसह द्वेष नसे. यदि तुम नाना प्रकार के ध्यान की सिद्धि के लिए चित्त को स्थिर करना . चाहते हो तो इट तथा अनिष्ट इन्द्रियों के विषयों में राग द्वेष और मोह मत. करो ॥ ४८ ॥ If you wish to have your mind fixed (focussed) in order to succeed in various kinds of meditation, do not be deluded by or attached to beneficial objects and do not be averse to harmful objects. । । । के ध्यान करने योग्य मन्त्र पणतीससोलछप्पणचउदुगमेगं च जवह ज्याएह। परमेट्ठिवाचयाणं अण्णं च गुरूवएसेण ॥ ४९ ॥ पञ्चत्रिंशत् षोडश षट् पञ्च चत्वारि द्विकं एकं च जपत ध्यायत । परमेष्ठिवाचकानां अन्यत् च गुरूपदेशेन ॥ ४९ ॥ णमोकार "पैंतीस-वर्ण" का मन्त्र रहा "सोलह"-"छह" का, "पाँच" "चार" "दो" "क" वर्णों का द्वार-ध्यान का, निज-गृह का. . यों परमेष्ठी-दाचक वर्णों का नियमित जप-ध्यानं करों, या गुरु-संकेतों पर मन को कीलित कर अवधान करो ॥ ४९ ॥ [परमेट्ठिवाचयाणं] ५२२वाय [पणतीससोलछप्पणचउगं] uizle, सोम, ७, पांय, यार, [च एगं] भने में अक्षर- भंजनी [जवह 14 5 [ज्झाएंहध्यान से [च भने [अण्ण] अन्य मंत्री [गुरूवएसेण] ગુરુના ઉપદેશ પ્રમાણે જપ અને ધ્યાન કરો. पञ्च परमेष्ठियों को कहने वाले जो पैंतीस, सोलह, छः, पाँच, चार, दो और एक अक्षररूप मन्त्रपद हैं, उनका जाप करो और ध्यान करो । इनके सिवाय अन्य जोमन्त्रपद हैं उनको भी गुरु के उपदेशानुसार जपो और ध्यावो ।। ४९ ॥ .. Repeat (Japa) and meditate on the Mantras,1 signifying the Panch Paramesthis? and consisting of thirty-five, sixteen, six, five, four, two and one letter. And other Mantras taught and given by the Guru. अनन्त गुण पा कर दिया, अनन्त भवं का अन्त । अनन्त सार्थक नाम तव, अनन्त-जिन जयवन्त 1. Blessed, proven energetic letter/s, word/s. 2. The five ' supreme beings. 3. Preceptor, spiritual teacher.
SR No.005954
Book TitleDravya Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichandra Acharya, Vidyasagar Maharaj, Kishor Khandhar
PublisherSamtaben Khandhar Charitable Trust
Publication Year
Total Pages30
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati
File Size4 MB
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