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* पुण्य और पाप का निरूपण
सुहअसुहभावजुत्ता पुण्ण पावं हवंति खलु जीवा । सादं सुहाउ णामं गोदं पुण्णं पराणि पावं च ॥ ३८॥ शुभाशुभभावयुक्ताः पुण्यं पापं भवन्ति खलु जीवाः । सातं शुभायुः नाम गोत्रं पुण्यं पराणि पापं च ॥ ३८ ॥ शुभ-मावों से सहित हुआ सो जीव "पुण्य" हो आप रहा, अशभ-भाव से घिरा हुआ ही जीव आप हो "पाप" रहा। . सुर-नर-पशु की आयु-तीन ये उधगोत्र औ सुखसाता, नाम-कर्म सैंतीस पुण्य हैं शेष पाप हैं दुख-दाता ॥ ३८॥ " [सुहअसुहभावजुत्ता] शुभ भने अशुभ माथी युति [जीवा] 4 [खलु शयथा [पुण्णं पावं] पु१५३५ भने ५३५ [हवंति] थाय छे. [साद]uriनीय, [सुहाउ] शुभ मायु, [णाम] शुभ नाम, [गोदं] 6थ्य मान में सर्व पुण्णं] पु ति छ [च] भने [पराणि] सातवहनीय, अशुभ माथु, भशुमनाम भने नीय गोत्र तथा यार पातिमा [पावं] પાકૃતિ છે.
शुभ तथा अशुभ परिणामों से युक्त जीव पुण्य पाप रूप होते हैं। साता वेदनीय, शुभ आयु-शुभ नाम-शुभ गोत्र- ये पुण्य प्रकृतियाँ हैं और शेष सब पाप प्रकृतियाँ . हैं।। ३८॥
The Jivas consist of Punya and Papa surely having auspicious and inauspicious Bhavas (respectively). Punya is Satavedaniya," auspicious life, name and class, while Papa is (exactly) the opposite (of these).
* मोक्ष का कारण सम्मईसणणाणं चरणं मोक्खस्स कारणं जाणे। यवहारा णिच्छयदो तत्तियमइओ जिओ अप्पा ॥ ३९ ॥ सभ्यग्दर्शनं ज्ञानं चरणं मोक्षस्य कारणं जानीहि । व्यवहारात् निश्चयतः तत्रिकमयः निजः आत्मा ॥ ३९ ॥ सच्चा दर्शन, तत्त्व ज्ञान भी सञ्चा, सच्चा चरण तथा, 'मोक्षमार्ग-व्यवहार' यही है प्रथम यही है शरण-कथा। परन्तु 'निश्चय-मोक्षमार्ग तो निज-आतम ही कहलाता, क्योकि आतमा इन तीनों से तन्मय होकर वह भाता ॥ ३९ ॥
[ववहारा] व्यवहारययी [सम्मईसणणाणं चरणं] सम्पशन, सभ्य भने सभ्ययात्रिने [मोक्खस्स] भानु [कारणं जाणे] ॥२ nu. णिच्छयदो] निश्यनयी तित्तियमइओ] सभ्यशन, सम्यान भने सभ्यध्यारित्र (अमे६३५) सहित [णिओ] पोतानो [अप्पा] भात्मा મોક્ષનું કારણ છે.
सम्यग्दर्शन, सम्यग्ज्ञान और सन्यचारित्र इन तीनों के समुदाय को व्यवहार नय से मोक्ष का कारण जानो । निश्चय नय से सम्यग्दर्शन, सम्यग्ज्ञान तथा सम्यक् चारित्रस्वरूप निज आत्मा को मोक्ष का कारण जानो ॥ ३९ ॥
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Know that from the ordinary point of view, right faith, right knowledge and right conduct are the cause of liberation. According to Nischaya Naya one's own soul consisting of these three is the cause of liberation.
1. Karma which produces pleasure and procures objects
causing pleasure.
बाल मात्र भी ज्ञान ना मुझमें मैं मुनि-बाल । ' बबाल भव का मम मिटे, प्रभु-पद में मम भाल ॥
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