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* आकाश-द्रव्य के भेद धम्माघम्मा कालो पुग्गलजीवा य संति जावदिये। आयासे सो लोगो तत्तो परदो अलोगुत्ति ॥ २०॥ धमाधर्मी कालः पुद्गलजीवाः च सन्ति यावतिके । आकाशे सः लोकः ततः परतः अलोकः उक्तः । २०॥ जीव-द्रव्य औ अजीव-पुद्गल काल-द्रव्य आदिक सारे, जहाँ रहें बस 'लोक' वही है लोक पूज्य जिन-मत पारे। तथा लोक के बाहर, केवल फैला जो आकाश रहा, 'अलोक' वह है केवल दर्पण में लेता अवकाश रहा ॥ २०॥
[जावदिये] क्षl [आयासे] ALLAH [धमाधम्मा] , मर्म [कालो] आग [य] भने पुग्गलजीवा] पुराल भने 4 [संति छ. [सो] ते [लोगो] els छ, [तत्तो] eLLIEN [परदो] बार ते [अलोगुत्तो] ASLIL sali भावे छ.
धर्म, अधर्म, काल, पुद्गल और जीव ये पाँचों द्रव्य जितने आकाश में हैं, वह "लोकाकाश" है और उस लोकाकाश के बाहर अलोकाकाश है ॥२०॥
Lokakasa is that in which Dharma, Adharma, Kala, Pudgala and Jiva exist. That which is beyond this Lokakasa is called Alokakasa.'.
* कालद्रव्य का स्वरूप व उसके दो भेद . वव्वपरिवहरूबो जो सो कालो हवेइ यवहारो । परिणामादीलक्खो बट्टणलक्खो य परमट्ठो ॥२१॥ द्रव्यपरिवर्तनरूपः यः सः कालः भवेत् व्यवहारः । परिणामादिलक्ष्यः वर्तनालक्षणः च परमार्थः ॥ २१ ॥ जीव तथा पुद्गल-पर्यायों की स्थिति अवगत जिससे हो, लक्षण वह 'व्यवहार-काल'का परिणामाविक जिसके हो । तथा वर्तना-लक्षण जिसका 'काल' रहा परमार्थ वही, समझ काल को उदासीन, पर वर्णन का फलितार्थ यही ॥ २१ ॥
[जो रे [दव्वपरिवट्टरूपो] Avi (Bq, पुस, धम् माहि) પરિવર્તનમાં (મિનિટ, કલાક, માસ... વગેરે રૂપ છે) કારણ છે અને [परिणामादीलक्खो] परिमन माह audel 00 २५५५ [सो] ते [ववहारो] या छ [य] मने विट्टणलक्खो पतनक्षवाणी [परमट्ठो] ५२मा (निश्चय॥१) छे.
जो द्रव्यों के परिवर्तन में सहायक, परिणामादि रूप है, वह व्यवहारकाल है और वर्तना-लक्षणवाला जो काल है वह निश्चयकाल है ।। २१ ॥
Vyavahara Kala' is that which helps to produce changes in substances and which is known from modifications' while Parmarthik (Nischaya) Kala is characterised by Vartana'.
1. Empty space, where no other substance exists.
भय-भय, भव-वन भ्रमित हो, भ्रमता-भ्रमता आज । संभय-जिन भव शिव मिले, पूर्ण हुआ मम काज ॥
1. Time from the ordinary point of view eg. day, week,
minute... etc. 2. produced in substances. 3. Continuity.