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________________ दान ऊपर-रत्नचूडकुमारनी कथा एकठा मळी विचार करवा लाग्या, पण कोईने तेवी बुद्धि सूझी नहीं; ते वखते रोहके आवी पोताना पिताने कह्युं के, "हे पिता, भोजन करवा उठो, मोडुं थई जाय छे." कुशीलवे कह्युं, "वत्स, तने भोजन सांभरे छे, पण मने सांभरतुं नथी, कारण के राजाए आ गामना वासीओने अघटित आदेश करेलो छे. रोहके पूछयुं, "हे तात, राजानो केवो आदेश छे? के जेथी आ गामना बधा लोको चिंतातुर जेवा देखाय छे." पछी कुशीलवे राजानो ते आदेश कही बताव्यो. ते सांभळी रोहके सर्व लोकोने कह्युं के, "तमे सर्वे प्रथम भोजन करी ल्यो, पछी हुं तमोने तेनो उपाय कहीश. " आथी सर्व लोकोए भोजन करी लीधुं. भोजन थई रह्या पछी रोहके पेला राजाना माणसने जवाब आप्यो के, "आ पर्वत उपर तेवी लांबी अने उंची शिला छे, ते शिलाथी राजाना कहेवा प्रमाणे प्रासाद थई शकशे; परंतु तेवो महेल बनाववामां जे द्रव्य वगेरे सर्व वस्तुओ जोईशे, ते राजाए आपवी पडशे." ते राजसेवके आवीने आ सर्व वात राजाने कही. पुनः एक वखते राजाए एक घेटो रोहकनी पासे मोकल्यो अने कहेवडाव्यं के, "कार्यने जाणनारा तमारे आ घेटानुं प्रतिदिन पोषण करवुं, पण ते घेटो शरीरे जाडो थवो न जोईए." रोहक ते प्रमाणे ते घेटानुं पोषण करवा लाग्यो अने साथै तेने वरू बताववा लाग्यो, आथी ते घेटो जाडो थई शक्यो नहीं. आ वृत्तांत जाणी राजाए फरीवार रोहकनी पासे कुकडो मोकल्यो अने कहेवडाव्यं के, "ते कुकडो बीजा कुकडा वगर एकलो युद्ध करे तेम तमारे करवुं." कृतज्ञ अने कलावान् रोहके ते कुकडानी सन्मुख दर्पण धर्यु. पोताना देहनुं प्रतिबिंब जोई ते कुकडो एकलो ज घणो वखत युद्ध करवा लाग्यो. पछी एक वखते राजाए एक तलनुं गाडुं भरी मोकलाव्यं अने कहेवडाव्यं के, "आ तलने पीली तेनुं तेल करी अमोने अर्पण करो; परंतु तमारे आ तलना दाणा उंधे मापे ग्रहण करवा अने सवळे मापे तेनुं तेल आपवुं." रोहके दर्पणना पाछला भागथी तल लई सवळे भागे तेनुं थोडुं तेल आप्युं. पछी राजाए एक मांदो पडेलो हाथी मोकलावी कहेवडाव्युं के, ज्यारे आ हस्तीनुं मृत्यु थाय, त्यारे मने कहेवुं नहीं, तेम आदरथी कह्या वगर पण रहेवुं नहीं." ते हस्ती मृत्यु पाम्यो त्यारे ते बुद्धिमान् रोहके राजाने विज्ञप्ति करी के, "हे स्वामिन्! आपे मोकलावेल हाथी घास खातो नथी, पाणी पीतो नथी अने श्वास- उच्छ्वास पण लेतो नथी." राजा बोल्यो, "त्यारे शुं मृत्यु पाम्यो छे?" रोहके कह्युं, "ए तो आप भले कहो, पण हुं मारा मुखे कहेनार नथी." आ प्रमाणे कहीं रोहक पोताने घेर चाल्यो गयो. बीजे दिवसे श्री विमलनाथ चरित्र 57 -- प्रथम सर्ग
SR No.005931
Book TitleVimalnath Prabhunu Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJayanandvijay
PublisherGuru Ramchandra Prakashan Samiti
Publication Year
Total Pages378
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati
File Size7 MB
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