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________________ मंत्री सुबुद्धिनी अवांतर कथा होय ! बीजानुं रक्षण करतां जो कदि प्राण जता होय तो भले जाय, पण तेम करवाथी धर्मनी उन्नति थाय नहि, माटे हुं एवं करूं के, जेथी मारा प्राण पण बचे, राक्षसनो पराभव थाय अने आ बाळा सुखी थाय. बीजा कार्यनुं शुं काम छे? ।। ३६७।। जो प्राणिनुं हित करनारुं सत्त्व होय, सिद्धिनी समृद्धिने आपनारी बुद्धि होय अने शरीरने यौवन आपनारी दया होय, तो ज ए सर्व वात बनवानो संभव छे. ए सर्व अर्थनी सिद्धि अने कल्याणनी प्राप्ति धर्मथी थवानी छे, तो हुं आ वखते सम्यक् प्रकारे धर्म आश्रय करूं; के जेथी मने सम्यक्त्व प्राप्त थाय. तेवा सम्यक्त्वने धारण करनारा पुरुष आगळ गंधर्व ( गवैयो) शुद्ध गंधर्व बने छे, पावक - अग्नि पावक - पवित्र करनार बने छे अने कोश ( शस्त्र) कोश (सुवर्ण) रूप बने छे. वधारे शुं कहेवुं; पण ते सम्यक्त्वधारी नरनी पासे मांसभक्षी राक्षस पुण्यजन (यक्ष) बनी जाय छे, यमराज धर्मराज बनी जाय छे, पिशाच कुबेर जेवो थइ जाय छे, चंडाळ भद्र-सारी जातिनो थई जाय छे, सर्प 2 भोगी थइ जाय छे. केशरी सिंह हरि (अश्व) थइ जाय छे अने चितरो चित्रकाय (चित्ररूप स्थंभित) बनी जाय छे. एवी रीते सत्य परायण पुरुषनी आगळ सर्व पदार्थो सत्य थई जाय छे अने असत्यपरायण पुरुषनी आगळ ते ज पदार्थो 4 असत्य थई जाय छे. ते उपरथी साबित थाय छे के; सम्यक्त्व सिद्धिने ज आपनारुं छे. अहिं जे आ पदार्थो छे ते मुख्य अने गौण अर्थवाळा होवा जोइए. ते पदार्थोंनो ज्यां सुधी खरो मर्म समजाय नहीं त्यां सुधी अर्थ सिद्धि थती नथी. तेथी हुं प्रथम आ राजकन्यानी वाणीनुं बराबर स्वरूप जाणी लउं पछी मारी बुद्धिना बळथी विचार करी लोकोनुं कल्याण थाय तेवुं कार्य आगळ करीश. " आवुं विचारी ते मंत्रीए राजकन्याने ते राक्षसनी कांइ विशेष हकीकत पूछी, एटले ते भय पामेली राजकन्या आदर तथा गौरव साथे आ प्रमाणे बोली, "भद्र! ते राक्षस आ दंडनी आगळ रहीने हंमेशां कांइक मंत्र जपे छे, ते अवसरे अने भोजनने अवसरे ते मौन धारण करे छे; ते वखते जो तमे आ दंड तमारा हाथमां ग्रहण करशो, तो ते राक्षस तमने कांइ करवाने, ते हरी लेवाने समर्थ थइ शकशे नहीं. वळी तेनी पासे एक खाटलो अने बेकणेरनी सोटीओ छे. ते त्रण वस्तुओ प्रभाववाळी छे. ते लइने ज तमारे तेने छोडवो; ते सिवाय छोडवो नहीं. तेमां जे काळा रंगनी सोटी छे, ते खाटला उपर पछाडवाथी ते खाटलो धारेले स्थाने जइ पहोंचे छे अने जे राता रंगनी सोटी छे, ते पछाडवाथी पेलो खाटलो स्वेच्छा प्रमाणे धारेले स्थाने रहे छे. मारी उपर रागी 1. देवयोनि विशेष 2. भोगवान् अने सर्पपक्षे फणायुक्त. 3. सत्य शुभ 4. असत्य - अशुभ. श्री विमलनाथ चरित्र - प्रथम सर्ग 29
SR No.005931
Book TitleVimalnath Prabhunu Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJayanandvijay
PublisherGuru Ramchandra Prakashan Samiti
Publication Year
Total Pages378
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati
File Size7 MB
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