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________________ मंत्री सुबुद्धिनी अवांतर कथा लाकडीना जेवो गणाय छे अने ते गोगणने पीडाकारी थइ पडे छे. तेनो विचार करो अने वंशज धर्म प्राप्त थयो होय पण जो ते जीवारोपथी रहित होय तो तेथी माणसो विग्रहनी अंदर रहेला शत्रुओनो जय करी शकता नथी. हे राजा, तमे पृथ्वीमां भूभृत्पणुं उच्च प्रकारे धारण करनारा छो; तेथी तमारामां जो धर्म नहीं होय तो धर्मना आधाररूप एवी आ प्रौढ पृथ्वी तमारे आधारे शी रीते रही शकशे? अने हे राजा, जो ते पृथ्वी तमारी पासे नहीं होय, तो तमारा वंशनुं स्थान क्यां रहेशे? तेथी तमारे विचार करी अनार्यने वर्जित करनारो धर्म ज स्वीकारवो जोइए. हे राजा, तमे अत्यंत पापनो आग्रह छोडी दो. भावनारूप जलना पूरथी दयारूप वृक्ष सिंचन करो अने दुष्टबुद्धिनो दूरथी त्याग करो. आ विश्वनी अंदर श्वेतवर्णनो, मंडलधारी, कौमुदीनो स्वामी अने कलाधार एवो राजा पण 'तमना ग्रहणथी निष्कल थइ जाय छे. हे नृप! जे पकड्युं ते मूकवू नहीं," एवी जो तमारी मान्यता होय तो कुलपुत्रकनी जेम तमारा अंगो अत्यंत भांगी जशे. ।।२६४॥ कुलपुत्रकनी कथा कोइ गाममां एक मातृमुख (मावडीओ) थइ गयेलो कुलपुत्रक रहेतो हतो. एक वखते तेनी माताए तेने एवी शीखामण आपी के, "हे पुत्र! जे पकडी राख्युं होय ते छोडवू नहीं." मातानी आवी शीखामणथी ते पुत्र एवो कदाग्रही थयो के, ते हमेशां जे कांइ सत्य के असत्य वचन ग्रहण करे, तेने कदि पण छोडे नहीं. तेना आवा दुराग्रही स्वभावथी लोकोए तेनी उपेक्षा करी दीधी, कोइपण माणस तेने बोलावे पण नहीं एक वखते तेणे कोइ एक उन्मत्त बळदने जोइ तेनुं पुंछडुं पकड्यु. लोकोए घणो वार्यो पण तेणे पकडेलु पुंछडु छोड्युं नहीं. तेथी ते बळदनी पाछळ घसडायो अने तेना अंग भांगी गया. हे राजा! तेनी जेम तमे पण कदाग्रही न थाओ. 1. वंशज-वांसमांथी थयेलो धर्म प्राप्त थयो होय एटले वांसनुं धनुष्य बनाव्युं होय पण जो ते जीवारोप-एटले पणचथी रहित होय तो तेथी माणसो विग्रह-युद्धनी अंदर शत्रुओनो जय करी शकता नथी. पक्षे वंशज-कुल जनित धर्म प्राप्त थयो होय अर्थात् सारा कुलमा जन्म थयो होय पण जो ते शरीर जीवारोपरहित-जीववगर- होय तो तेनाथी विग्रह-शरीरनी अंदरना काम क्रोधादि छ शत्रुओनो जय करी शकातो नथी. 2. पृथ्वी वगर वांस पण रही शकतो नथी. 3. राजा श्वेतवर्णनो, मंडल-देशमंडलने धारण करनार, कौमुदी-पृथ्वीनो स्वामी अने कलाओनो ज्ञाता होय छे अने पक्षे राजा-एटले चंद्र ते श्वेतवर्णनो मंडल धारी, कौमुदी-ज्योत्स्नानो स्वामी अने कलाधर होय छे. 4. जो तम-तमो गुण अने चंद्रपक्षे राहुनो ग्रास थयो होय तो निष्कल-राजा विकल थई जाय छे अने चंद्र कला रहित थइ जाय छे. श्री विमलनाथ चरित्र - प्रथम सर्ग 22
SR No.005931
Book TitleVimalnath Prabhunu Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJayanandvijay
PublisherGuru Ramchandra Prakashan Samiti
Publication Year
Total Pages378
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati
File Size7 MB
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