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गणधर देशना अने प्रभुनो परिवार भगवान् श्री विमलनाथ प्रभुनी उपर प्रमाणे देशना सांभळी केटलाएक पुरुषोए दीक्षा लीधी अने विवेकी एवा शिरभृत् प्रमुखे श्रावक व्रतो अंगीकार कर्या. वासुदेव स्वयंभूए सम्यक्त्वने ग्रहण कयुं अने बीजा पण अविरत जनोए ते ग्रहण कयु. प्रभुए एक पहोर सुधी देशना आप्या पछी बीजे पहोरे मंदिर गणधरे आ प्रमाणे देशना आपी. 'हे भविजनो! आ संसार एक दुःपार (दुःखे पार पामी शकाय एवा) खारा समुद्रना जेवो छे. जन्म, मृत्यु, जरा अने रोगरूपी चपळ कल्लोलोथी ते विराजित छे. क्रोधरूपी वडवाग्निथी ते युक्त छे, तेनी अंदर गर्वरूपी पर्वतनो वास छे. मायारूपी तेनी 'वेला छे, लोभरूपी गंभीर आवत घुमरीओथी ते दुस्तर छे. जीवयोनिरूप मगरना समूहथी ते चारे तरफ व्याप्त छे. आश्रवद्वाररूप नदीओना कादववाळा जलथी ते पूरायेलो छे. हास्यरूपी फीणथी ते प्रसरेलो छे. द्वेषरूपी प्रचंड पवनवडे ते दुःसह छे, कुदर्शनरूपी दुर्वार जलवडे ते भरेलो छे. ते हमेशां तृष्णानी वृद्धि करनारो, जलजंतुओथी युक्त, नीच तथा उच्च गोत्रोथी संकलित अने जेमां अनेक मनुष्यो कादवमां खुची गयेला छे. जेनुं स्थान सम्यक्त्व छे, जेमां व्रतरूपी फलक पाटीया छे, जेमां गुणना समूहरूप दोरडां छे, निश्चल रूपी जेमां डोल छे, जेमां शुक्ल ध्यानरूपी श्वेत ध्वज छे, गुरुरूप जेना खलासी छे, सारा नियमरूपी जेना सढो छे, क्षमारूपी जेमा हलेसां छे, जेमां ज्ञानरूपी ध्रुवनो तारो छे, जेमां संतोषरूपी अटाळी छे, जेमां तपना . भेदरूपी 4पौलिंद छे. अने जेमां दयारूप नालिका छे, एवं उत्तम वहाण जे पुण्यवान् नरने प्राप्त थाय छे, ते पुरुष ते संसार समुद्रने तरीने महानंद मोक्षरूपी उत्तम नगरमां अवश्य जाय छे." आ प्रमाणे बीजो पहोर पूर्ण थतां मुख्य गणधर मंदिर स्वामी देशनाथी विराम पाम्या. पछी देव, असुर अने मनुष्यो पोतपोताने स्थाने चाल्या गया. एवी रीते सेवा करनारा उत्तम देवताओ श्री विमलप्रभुर्नु सुखसंपत्तिने शरणे आपनारुं समवसरण स्थाने स्थाने करता हता. केवलज्ञान थया पछी बे वर्ष उणा पंदर लाख वर्ष सुधी पृथ्वी उपर विहार करतां श्रीविमलनाथ प्रभुने आ प्रमाणे परिवार थयो हतो. अडसठ हजार (६८,०००) साधुओ, एक लाख अने आठसो (१,००८,००) साध्विओ, अगियारसो (१,१००) चौद पूर्वधारी. अडताळीशसो (४,८००) अवधिज्ञानी, पंचावनसो (५,५००) मनःपर्यवज्ञानी, तेटला ज (५,५००) केवलज्ञानी, नेवूसो (९,०००) वैक्रिय लब्धिवाळा, त्रण हजार 1. मर्यादातट. 2. तृषा अने पक्षे वासना. 3. उंचा नीचा गोत्रो पक्षे पर्वतो. 4. वहाणन बंधारण.
श्री विमलनाथ चरित्र - पंचम सर्ग
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