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________________ श्री विमलनाथ प्रभुने प्राप्त थयेल केवळज्ञान स्वयंभू वासुदेवे ते शिलाने पाछी त्यां मूकी दीधी अने पछी थोडा दिवसे ते द्वारकामां आवी पहोंच्यो. त्यां चक्र, खड्ग, धनुष्य, शंख, वनमाळा, गजेंद्र अने मणि-ए सात प्रभावी रत्नो तेने प्रगट थया; ते सिवाय बीजी चक्रवर्तीनी अर्ध समृद्धि पण तेने प्राप्त थई कारण के "पुण्यानुसारतो लक्ष्मीर्जीवानां जायते" जीवोने पुण्यानुसारे लक्ष्मी प्राप्त थाय छे. पछी सर्व राजाओथी वीटायेला रुद्रे पोताना बंधु भद्रनी साथे ते स्वयंभूने वासुदेवपणानो अभिषेक कर्यो. जाणे जंगम निधान होय तेवा तेणे कोईने दान आप्युं, कोईने दान तथा मान आप्या, कोईने आदरथी स्थान आप्यु अने कोईने जंगम निधान जेवं प्रधान वाहन आप्यु. खरेखर! जे ईष्टदान छे, ते सर्वेनुं मुख्य वशीकरण छे. वासुदेव स्वयंभूए राजधर्मथी लोकोना अने जिनधर्मथी धर्मीओना अन्यायने दूर करी सारो यश प्राप्त को. आ अरसामां बे वर्ष सुधी विहार करी श्री विमलनाथ प्रभु विचरता विचरता ते पोताना दीक्षास्थानमा पुनः आवी चड्या. ते प्रभु ममता रहित, अहंकारथी वर्जित, क्रोधरूपी योद्धानो त्याग करनार मायारूपी स्त्रीथी रहित, लोभना क्षोभथी वर्जित, मोह, द्रोह तथा मद वगरना, हास्य, लास्य, रति, अरति, शोक, अविरति अने भीतिथी मुक्त, लीला, प्रमीलावडे विषम एवा काम रतिमां अनासक्त, प्रतिबंधना त्यागी, विरागी, निःस्पृह, सहन करनार, जुगुप्सा, क्रीडा, कलह, अने द्वेषना योगथी रहित, खेद, प्रमाद, आर्तस्वर, विवाद अने स्वादने वर्जनारा, मौनधारी, ज्ञानी, सदाध्यानी, सुंदर संतोषना पोषक, अप्रमादी जनोने आनंद आपनार, परीषहोने जीतनार, अष्टांगयोग सहित, भववासथी वियुक्त, शत्रु तथा मित्रमा समान चित्तवाळा, शुभकर्ममां प्रवर्तेला अने ज्ञान, दर्शन, चारित्र, तप, वीर्य, क्षमा, दया, मार्दव, सरळता, वैराग्य, मुक्ति, सत्य, पराजय, शौच, अपरिग्रह, ब्रह्मचर्य, संयम, बुद्धि, भावना, संवर, उदारता अने निर्जरा वगेरे जे अनुत्तर गुणो कहेवाय छे, ते वडे पोताना आत्माने भावनारा हता. तेवा विमलनाथ प्रभु सहस्राम्रवनमां पधारी त्यां आवेला एक जंबूवृक्षनी नीचे शुद्ध स्थानमा छट्ठ तप करी स्थिर थई प्रतिमाने वहन करता (काउस्सग्गध्याने) रह्या. त्यां अपूर्व करणमा रही क्षपक श्रेणीने प्राप्त थयेला प्रभुए क्षीणमोह गुणस्थाननो अंत करी घातिकर्मोनो उच्छेद कर्यो. पछी शुक्लध्याने रहेला प्रभु पौष मासनी शुक्ल षष्ठीने दिवसे चंद्र उत्तराभाद्रपद नक्षत्रमा आवतां केवळज्ञानने प्राप्त थया. हवे ते जगत्पति प्रभु सर्वज्ञ अने सर्वदर्शी थया, तेथी तेओ त्रिकाळ विषयने श्री विमलनाथ चरित्र - चतुर्थ सर्ग 282
SR No.005931
Book TitleVimalnath Prabhunu Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJayanandvijay
PublisherGuru Ramchandra Prakashan Samiti
Publication Year
Total Pages378
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati
File Size7 MB
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