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________________ श्री विमलनाथ प्रभुनुं व्रतग्रहण लागती, केटलीएक ओवारणा लेती अने केटलीक धन्य स्त्रीओ पोताना गृहद्वारमा स्वस्तिक वगेरे मांगलिक करती हती. ए प्रियदर्शन प्रभु जेनी समीपे आवता, ते माणस मित्रनी जेम अतिहर्ष धारण करतो हतो अने महान् उत्सवो आचरतो हतो. अने ए प्रभु सत्वर जेने छोडी देता हता, ते माणस तरत कृष्ण बनी जतो हतो. अहो, लोकोने 'कृष्णपणुं प्राप्त करवू दुर्लभ छे, एमां शो संशय छे? पछी प्रभुए कोईना घरमां प्रवेश को नही, परंतु जयराजाना प्रासादमां प्रवेश कर्यो. लक्ष्मीवाळा प्रासादने छोडी प्रभु शुं छापरामां वसे? एवं धारीने ते प्रभु सर्वेना गृहो छोडी ते राजाना प्रासादमां गया हता. प्रभुने जोतां ज सारा मुखवाळो जयराजा वेगथी सिंहासन छोडी अने छत्र वगेरे राजचिह्नोनो त्याग करी प्रभुनी सन्मुख आव्यो. रोमांचरूप कवचने धारण करता ते जयराजाए पोताना केशवडे प्रभुना चरण कमळने मार्जित करी हर्षना अश्रुवडे तेनुं क्षालन कयु. पछी बेठा थई ते राजाए अंजलि जोडी आ प्रमाणे प्रभुने विज्ञप्ति करी- "हे भगवन्, आजे मारो जन्म सफळ थयो छे, मारूं घर कामकुंभना जेवू बन्युं छे, वादळा वगरनी वृष्टि थई छे, वाव्या वगर कल्पवृक्ष उग्युं छे, अणचिंतव्यो चिंतामणि मन्यो छे, इच्छा कर्या वगर कामधेनु आवी चडी छे अने अकस्मात् अणधार्यो सारो व्यवसाय-लाभ प्राप्त थयो छे, तेथी आप प्रसन्न थईने मारा घरनो उच्च आहार स्वीकारो." पछी प्रभुए ते आहारने निर्दोष धारी पोताना प्राणना निर्वाहने माटे बे हाथ प्रसारी ते जयराजाना घरनो आहार वहोर्यो. ते वखते जे दुंदुभिनो नाद थयो. तेमां कांई जरापण आश्चर्य न हतुं, कारण के सर्व ठेकाणे दातारने माटे सारो शब्द अवश्य थाय छे. ते वखते घनवाहन देवता तरफथी जे सुवर्णनी वृष्टि थई ते पण तपना अंतकाले थवी ज जोईए. राजा अने प्रभुनी ए स्वाभाविक स्थिति-मर्यादा छे. कोई बीजो राजा आवे त्यारे सर्व विबुध-विद्वानो चेलोत्क्षेप (धजा-वावटा चढाववानु) हर्षथी करे छे, तो पछी त्रण जगतना स्वामी आवे त्यारे सर्व-विबुध-देवताओ चेलोत्क्षेप करे तेमां शुं आश्चर्य? सुमनस्-देवताओए ते काले पृथ्वी उपर सुमनस्-पुष्पोनी जे वृष्टि करी ते जगतमां बोधि आपनारा प्रभु पधारतां थाय तेमां कांई आश्चर्य पामवानुं नथी. ते वखते देवताओए सुगंधी अमृत-जलनी वृष्टि करी, तेनाथी पृथ्वी उपर अन्नने आपनारा धान्यनी संपत्ति 1. अहिं एवो अर्थ पण थाय के, लोकोने कृष्णरूप बनवू ते दुर्लभ छे, ए वात नि:संशय छे. 2. तप एटले तपस्या अने वृष्टि पक्षे उनाळो. 3. सुमनस-एटले विद्वानो. सुमनस्-सारा मननी वृष्टि करे एटले सारा मनोभाव प्रगट करे. प्रभु पक्षे सुमनस् एटले पुष्यो. श्री विमलनाथ चरित्र - चतुर्थ सर्ग 247
SR No.005931
Book TitleVimalnath Prabhunu Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJayanandvijay
PublisherGuru Ramchandra Prakashan Samiti
Publication Year
Total Pages378
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati
File Size7 MB
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