________________
श्री विमलनाथ प्रभुनुं व्रतग्रहण
इंद्रोए ते विश्वनायक प्रभुना अंगने दिव्य चंदनथी लिप्त कयुं, देवदूष्य वस्त्रोथी तेमने विभूषित कर्या, कल्पवृक्षना पुष्पोनी श्रेणीनो मुगट पहेरावी विराजित बनाव्या अने हार, अर्धहार, बाहुबंध, तथा कुंडळ वगेरेथी सुशोभित कर्या. पछी इंद्रे करेली देव, दानव अने मानवोए हर्षथी वहन करवा योग्य एवी देवदत्ता नामनी शिबिका उपर प्रभु आरूढ थई गया. सूर्य जेम पूर्वगिरिने अलंकृत करे, तेम प्रभु तेमां रहेला रत्नमय अने तेजना समूहने धारण करनारा सिंहासनने अलंकृत कयुं. प्रभुनी ने बाजु देवताओए धारण करेला बे चामरो जाणे तीर्थंकरने सेववाने भूमि अने स्वर्गरूप बे स्त्रीओ आवी होय तेम शोभता हता. प्रभुनी उपर जाणे शिव-मोक्षनी छाया करनारा मूर्त- अपरिमित शुकलध्यान होय तेवुं स्फुरायमान धर्ममित्र छत्र शोभी रह्युं हतुं. पछी नटीओ नृत्य करतां, गीतो गवातां, बंदिवृंद पाठ करतां, वार्जित्रो वागतां अने याचकोने चोतरफ दान आपतां प्रभु परिवार साथै सहस्राम्र वनमां गया. ।।४०१ ।। त्यां शिबिकामांथी उतरी अशोक वृक्ष नीचे जई पोताना भोग कर्मना योग रूप आभूषणोनो समूह प्रभुए छोडी दीधो. समता रूप अमृतना समुद्र रूप एवा प्रभुए हर्षथी बीजो बधो परिग्रह अने चतुर्विध प्रतिबंध पण त्यजी दीधो. 1 अरिहंत प्रभुए पछी जाणे काला क्लेश होय तेवा केशोनो पांच मुष्टिवडे लोच कर्यो. इंद्र ते लोचना केश ग्रहण करी लीधा. पछी माघ मासनी शुक्ल चतुर्थीने दिवसे अपराह्नकाले ( पाछला पहोरे) जन्मना शुभ नक्षत्रमा इन्द्र द्वारा कोलाहल अटकाव्या पछी 'नमः सिद्धेभ्यः' एम उच्चार करी छट्ठ तपवाळा प्रभुए भगवत् शब्द वगरनुं अने आगममां साररूप एवं सामायिक त्रण वार उचयुं. ते वखते सद्भावनाना स्थान रूप एवा इंद्रे प्रभुना स्कंध उपर देववस्त्र पधराव्युं. त्यारथी लोकोमां वस्त्रपूजानी प्रवृत्ति थई छे. पछी प्रभुने मनःपर्यव ज्ञान उत्पन्न थयुं, इंद्र प्रभुना केश क्षीरसागरमा पधराव्या. सत्कर्मथी पवित्र एवा एक हजार राजपुत्रो प्रभुनी पाछळ विवेकवाळी दीक्षा ग्रहण करी. पछी भविष्यमा जेमनुं कल्याण थवानुं छे अने जेमनी मुखमुद्रा हर्षित थई छे एवा इंद्र प्रभुने नमी अमृतना जेवी मधुरवाणीथी आ प्रमाणे विज्ञप्तिकरी
"हे प्रभु, आत्रण भुवनमां तमारुं चारित्र यथार्थ रीते विख्यात छे, ते घणा प्राणीओने मोक्षदायक थाओ. आ पृथ्वी उपर लोको संसारनी प्रवृत्तिने पोतानी मेळे ज जाणे छे, धाववुं अने रोवुं, ए बालकने कोण शीखडावे छे? अनार्य देशमां पण लोको विविध प्रकारना विज्ञानने जाणे छे, परंतु ज्यां तमे पोते 1. द्रव्य, क्षेत्र, काल अने भावनो प्रतिबंध.
श्री विमलनाथ चरित्र - चतुर्थ सर्ग
245