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________________ श्री विमलनाथ प्रभुनुं व्रतग्रहण लोकांतिक देवताओ त्यां आवी पहोंच्या. सर्व प्राणीओमां वैरने छोडी समता रूप रमणीय सुधामां मन थयेला अने तत्त्वार्थनो निश्चय करवामां लग्न थयेला ते जिनेश्वरने नमी सरल बुद्धिवाळा ते देवताओए विज्ञप्ति करी के, "हे प्रभु, तमे तीर्थकर छो, माटे धर्म तीर्थने प्रवर्तावो." वळी कडं के, "आ काळे खेद ऊपजावे तेवो धर्मनो उच्छेद थई गयो छे, तेने पाछो सत्वर सांधी दो. कारण के तमे गुणोना धारक छो. जेम बाह्य तीर्थ-रूडा पाणीना आरा सिवाय नदीमां उतरी शकातुं नथी, तेम धर्मतीर्थ सिवाय संसारसागर उतरी शकातो नथी." जेम कोई पोते स्वस्थाने जतो होय तेने वळी कोई प्रेरक मळी आवे तेवी रीते प्रभु प्रथमथी ज दीक्षार्थी हता, तेओ ते देवताओना आवां वचन सांभळी विशेष दीक्षार्थी थई गया. पछी प्रभुए उंची जातना वार्षिकदान आपवानो आरंभ कर्यो. कारण के सर्व धर्मोनी अंदर दानने मुख्य कहेलुं छे. कुबेरनी आज्ञाथी तिर्यक् जुंभक नामना देवताओए धणी वगरना प्रधान भंडारो अने जेमना धणीनो उच्छेद थयो होय एवा घसेमांथी घणु द्रव्य प्रभुनी पासे हाजर कयु. कारण के पुण्यवान्ने पगले पगले द्रव्यना भंडारो रहेला होय छे. कल्पवर्त वेळा थाय, तेटलामां प्रभु एक करोड अने आठ लाख सुवर्णतुं दान प्रतिदिन आपता हता. एक वर्षमा प्रभुए त्रणसो अठ्यासी करोड अने अंशी लाख सुवर्णतुं दान कयु. श्री सर्वज्ञरूपी मेघ वरसतां याचकरूपी सरोवरो भरपूर थई गया अने क्षमा-पृथ्वी तापरहित थई गई. ए घj ज सारं बन्यु एम हुं मानुं छु. प्रभु हिरण्यनो वरसाद वरसावता 'हिरण्यवर्णनी आशा लोकोमा विख्यात थई शांत थई गई, ए अद्भुत वार्ता सांभळवामां आवी. प्रभुना दीक्षाना कल्याणकमां सुंदर आकृतिवाळा कया इंद्रो त्यां न आव्या? अर्थात् सर्वे आव्या हता. आ जगतमां दातारनो आश्रय कोण न करे? ते समये इंद्रोए देवताओना समूहने साथे राखी स्वच्छ अने सुगंधी तीर्थजल लावी ते वडे प्रभुने स्नान कराव्यु. स्वभावथी निर्मल एवा प्रभुने सर्व देवताओए जे अभिषेक कर्यो, ते तेमनी शक्ति सहित भक्ति ज हती. जेम पृथ्वी उपर सुधाकर-चंद्रवडे सुंदर एवा गंगाधर-शंकरने लोकोनी श्रेणीओ कूवाना जलथी स्नान करावे छे, सूर्यनी आगळ जेम दीवो धरवामां आवे छे अने सेवको जेम राजाने भोजन करवा निमंत्रे छे, तेम त्रण जगतना स्वामी एवा प्रभुने एवी रीते योग्य कार्यनो विधि करवामां आवतो हतो. कारण के गयेलो अवसर पुनः कदि पण मळतो नथी. पछी सौधर्म वगेरे 1. हिरण्यवर्णा-लक्ष्मी. श्री विमलनाथ चरित्र - चतुर्थ सर्ग 244
SR No.005931
Book TitleVimalnath Prabhunu Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJayanandvijay
PublisherGuru Ramchandra Prakashan Samiti
Publication Year
Total Pages378
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati
File Size7 MB
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