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________________ देशावकाशिक व्रत करे छे. आ व्रत लई जे पुरुष तेनी विराधना करे छे ते पुरुष काकजंघनी जेम आ लोक तथा परलोकमां दुःख पामे छे; काकजंघनी कथा अहिं आपेल छे. ज्ञानीमहाराजे जिनागममां कडं छे के चार पर्वोमां प्रतिमाधर श्रावकोए सर्वथी चार प्रकार, पौषधव्रत पाळवू अने बाकीना सशक्त श्रावकोए एज प्रमाणे पौषध व्रत सर्वथी पाळवू तथा देशथी अल्पशक्तिवाळा श्रावकोए देशथी चार प्रकारच् पौषधव्रत पाळवं. सर्व गृहस्थ श्रावकोए पर्वने दिवसे शक्ति प्रमाणे पौषध ग्रहण करवू जोईए; जे पुरुषो कर्मरूपी रोगमां औषध रूप एवा सुंदर पौषधने पाळे छे तेओ मलयकेतुनी जेम देवताओने प्रशंसनीय थाय छे. मलयकेतुनी आ कथा घणी ज रसिक अहिं आपवामां आवेल छे. __ छेल्लुं अने चोएं शिक्षा (श्रावक) व्रत अतिथी संविभाग नामनुं छे. कोई अतिथिने कांईपण आपीने पछी जमवू ते भोजन कहेवाय. कदापि ते प्रमाणे हमेशां न बने तो विवेकी पुरुषोए पौषधना पारणाना दिवसे तो पात्रने भोजन आपीने ज जमवू जोईए. जे पुरुष आ व्रतनुं आराधन करे छे ते शांतिमतीनी जेम अवश्य सुखनुं पात्र बने छे. अने जे तेनी विराधना करे छे ते पद्मलोचननी जेम आ लोक तथा परलोकमां दुःख पामे छे. अहिं आ व्रत उपर शांतिमती अने पद्मलोचनानी कथा आपवामां आवेल छे. आ प्रमाणे पूर्वे कहेला बार प्रकारनो श्रावकनो धर्म बार देवलोकने आपनारो छे अने सूर्यनी जेम सम्यग्दृष्टि मनुष्यना अंधकारने हरनार छे. जेम सर्व रसवती रुचीथी उत्तम पुष्टि आपनार छे तेम सर्व क्रिया पण रुचीथी संवरपुष्टि आपनार छे. उत्तम पुरुषने चारित्र वगेरेनी सामग्री होय पण ते पुरुष जो सम्यग्दर्शनथी रहित होय तो तेने अक्षयपद-मोक्षनुं दर्शन थतुं नथी. जेम नायक विनानो हार, जिनेश्वर विनानो प्रासाद अने घी विनानो आहार आ पृथ्वी उपर शोभाने प्राप्त थतो नथी. तेवी रीते सम्यग् विनानो धर्म सुख समूहने करनारो थतो नथी. तेथी ते सम्यक्त्व कुलध्वजनी जेम मनुष्योए सदा पाळवं जोईए. अहिं सम्यक्त्व उपर कुलध्वजनी कथा आपेल छे. __ भगवान विमलनाथ स्वामीनी आ प्रमाणे देशना सांभळी केटलाक भव्य पुरुषोए चारित्र लीधुं, केटलाएके श्रावक व्रत लीधा. स्वयंभू वासुदेवे सम्यक्त्व ग्रहण कयु. एवी रीते एक पहोर देशना आप्या पछी श्रीमंदर गणधरमहाराजे एक पहोर सुधी देशना आपी. पछी देव, असुर अने मनुष्यो वगेरे पोतपोताना स्थाने चाल्या गया. xvii
SR No.005931
Book TitleVimalnath Prabhunu Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJayanandvijay
PublisherGuru Ramchandra Prakashan Samiti
Publication Year
Total Pages378
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati
File Size7 MB
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