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श्री विमलनाथ प्रभुनी कुमार अवस्था बेठेला हंसोनी जेम शोभता हता. घणां अर्थवाळु अने सुवर्णथी युक्त एवं कटिसूत्र धारण करतां प्रभु "साधुओने सदा आq सूत्र शीखवानुं छे," एम जणावता हता, तमना समूहने हरनार अने रत्न युक्त एवा अंगद-बाहुबंधने धारण करनारा प्रभु "लोकोए आवा गुरु पोतानी भुजामा राखवा" एम प्ररूपणा करता हता. सुमनस्नी श्रेणीथी युक्त एवा बे कुंडलने धारण करता प्रभु भव्य प्राणीने एवो उपदेश करे छे के, "हे भव्य तुं आq वचन काने सांभळजे.". श्रीजिन भगवान्ने अंगनी शोभा माटे अलंकारो धारण करवानी जरूर न हती; परंतु माता वगेरेने तेम करवाथी हर्ष थतो हतो. जे प्रभुना अंगना वर्णनी साथे विवाद करतुं सुवर्ण काबरूं बनी गयुं अने लोह पणाने लईने ते 'सुवर्णनो शब्द पृथ्वी उपर अद्यपि थतो नथी.
आ प्रमाणे पुत्रनुं पालन करवामां तत्पर एवो राजा कृतवर्मा राज्य करतो हतो. तेवामां एक वखते कोई सामुद्रिक शास्त्रने जाणनारो विद्वान् त्यां आवी चड्यो राजानी आज्ञाथी ते विद्वान्नो प्रवेश थयो अने ते राजानी पासे आवीने बेठो! ते वखते प्रभुने उत्संगमां लई बेठेला राजाने जोई ते जोषीए पोता मस्तक धूणाव्युं राजाए तेनुं कारण पूछ्युं. त्यारे उत्तम लोकोने प्रिय एवो विद्वान् जोषी बोल्यो-"राजन्, लोक शास्त्रमा पुरुषोना बत्रीश लक्षणो कहेलां छे, परंतु लक्ष्मीना गृहरूप अने सर्व प्राणीओनी इच्छा पूरनारा एवा आ तमारा कुमारना देह उपर तो एक हजारने आठ लक्षणो देखाय छे. तेथी आ कोई लोकोत्तर पुरुष थशे. कारण के सर्व शुभ के अशुभ भावी लक्षणो उपरथी जाणी शकाय छे. आ कुमारना चरण अने हस्तना तळीयामां दंड, चक्र, खड्ग, बाण, धनुष्य, शक्ति अने गदाना जेवी रेखाओ छे, तेथी ते शस्त्रोने धारण करनार उत्तम पुरुष थशे. तेना हाथनी तर्जनी आंगळीमां गृहबंधनी अंदर आवेली रेखा उपरथी १. कटीसूत्र पक्षे घणा अर्थ-किंमतवाळं सुवर्ण-सोनाथी युक्त अने सूत्र पक्षे-घणा अर्थ
शब्दार्थवाळु अने सु-सारा वर्ण-अक्षरोवाळु. 2. अंगद बाहुबंध पक्षे-तम-अंधकारने हरनार अने रत्न युक्त-रत्नोथी जडित, गुरु पक्षे तम-अज्ञानने हरनार, रत्न-ज्ञान, दर्शन चारित्र रूप रत्नोथी युक्त अने अंगद द्वादश-अंगने आपनार-उपदेश करनार, भुजामां राखवानो अर्थ एवो छे के. बाहुबंध आभूषण-भुजा उपर बंधाय छे. अने गुरुने भुजामां राखवा एटले पोतानी पासे राखवा. 3. कुंडल पक्षे-सुमनस्-पुष्योर्थी युक्त अने वचन पक्षे सुमनस्-सारा मनथी युक्त अथवा विद्वानोथी युक्त एटले विद्वानोए कहेल वचन काने सांभळवू. 4. सुवर्ण प्रभुना अंगना वर्णनी साथे वाद करवा गयुं तेथी ते काबरं बनी गयु अने लोहनी जेम तेनो अवाज पण थतो नथी. बीजा धातुनी जेम सोनानो रणकार लागतो नथी. 238
श्री विमलनाथ चरित्र - चतुर्थ सर्ग