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________________ श्री विमलनाथ प्रभुनी कुमार अवस्था धारण करी त्रण प्रकारे घन वाहन थयो छं, तमोने 1 क्षमाधारना स्वामी मानी हूं वराहने आश्रित थयो, पण तमो ए अमारा अचलने लक्ष्मीश कर्यो अने उंचे प्रकारे तेनुं शिर दबावी दीधुं, तेथी हवे घणो लांबो प्रसाद करो अने तेथी ते पर्वत सुवर्ण दंडनो दाता अने राजाओए अने साधुजनोए नमेलो अने स्तवेलो छे, "हे प्रभु, तमारा जन्मोत्सवने प्राप्त करी आ 2 क्षणदा सोगणी थयेली छे. अने आ संसारना दानथी ते रात्रिनुं दोषा एवं जे नाम छे, ते तमोने शुं ईष्ट नथी थयुं ? स्वभावथी पुण्यरूप एवं आ जल तमारा संगथी वर्णने प्राप्त थयुं छे, ते तमारा सुवर्ण सारावर्णवाळा अंगना संयोगथी कोने पवित्र न करे अर्थात् सर्वने पवित्र ज करे छे." आ प्रमाणे श्री विमलनाथ प्रभुने स्नात्र करवाने अवसरे इन्द्रे करेली स्तुति जे मनुष्य भणे छे, ते मनुष्य सत्पुरुषोने सेववा योग्य थाय छे. आ प्रमाणे स्तुति करी सौधर्मेंद्र पूर्वनी जेम पांच रूप करी प्रभुने लई सूतिकागृहमां आव्यो, त्यां श्यामादेवीनी अवस्वापिनी निद्रा अने प्रभुनी प्रतिकृतिने दूर करी श्यामादेवीना अंगने सुख आपनारा ते प्रभुने तेमनी पडखे मूक्या. पछी भक्ति करनारा इंद्रे जिनप्रभुने ओशीके बे दिव्य वस्त्रो अने कुंडळ मूक्या अने प्रभुना अंगुठामां अमृत मूक्युं पछी इंद्रनी प्रेरणाथी कुबेरे ते राजाना घरमां प्रातःकाले सोना, रूपा अने रत्न वगेरेनी वृष्टि करी. इंद्रना आदेशथी आभियोगिक देवताओए चारे प्रकारना निकायोमां आ प्रमाणे आ घोषणा करी - "जे कोई आ जिन भगवान् अने तेमनी मातानुं पोताना हृदयमां अशुभ चिंतवशे, तेना मस्तकना सात कटका थई जशे.” ते पछी इंद्र त्यां धात्रीकर्म करवा माटे पांच अप्सराओने राखी पोते नंदीश्वरनी यात्रा करी पोताने स्थाने चाल्यो गयो. बीजा पण इंद्रो मेरुपर्वतथी ज नंदीश्वर द्वीपमां गया अने त्यां अट्ठाई उत्सव करी पोतपोताने स्थाने 1. क्षमाधर क्षमाधारी मुनिओना स्वामी मानीने वराह उत्तम अहंभावने आश्रित थयो अने तमोए अमारा अचल मेरु पर्वतने जाते पधारी लक्ष्मीश- शोभानो धणी बनाव्यो अने तेना शिर उपर चड़ी बेठा. हवे तेनी उपर प्रसाद करो. कृपा करो मेरु पर्वत सुवर्णनो दाता छे अने तमारा पंधारवाथी राजाओ अने साधु पुरुषोए ते नमेलो छे अने स्तवेलो छे, पक्षे अन्यमतिओना वराह अवतारनो अर्थ पण नीकळे छे जे विष्णुने क्षमाधर - शेषनागना स्वामी मानीने वराहनो आश्रय कर्यो, पण ते विष्णुए वराहने लक्ष्मीपति बनाव्यो अने तेनुं मस्तक दबावी दीधुं. ते वराह अचल-न चलायमान थाय तेवो मजबूत के अने सुवर्ण दंडनो दाता अने राजाओ अने साधु पुरुषोए नमेलो तथा स्तवेलो छे. 2. क्षणदा एटले रात्रि पक्ष क्षण-उत्सव आपनारी 3 प्रभुने संसारमां लावनारी तेथी संसार आपनारी कही छे. 4. वर्ण एटले रंग- सोनेरी रंग. श्री विमलनाथ चरित्र - चतुर्थ सर्ग 233
SR No.005931
Book TitleVimalnath Prabhunu Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJayanandvijay
PublisherGuru Ramchandra Prakashan Samiti
Publication Year
Total Pages378
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati
File Size7 MB
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