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________________ श्री विमलनाथ प्रभुनो जन्म महोत्सव इंद्रो, जलकांत अने जलप्रभ नामे बे उदधिकुमारोना इंद्रो, अमित अने अमितवाहन नामे बे दिककुमारोना इंद्रो, वेलंब अने प्रभंजन नामे बे वायुकुमारोना इंद्रो, महाघोष अने सुघोष नामे बे स्तनितकुमारोना इंद्रो, काल अने महाकाल नामे बे व्यंतरोना इंद्रो, सुरूप अने प्रतिरूप नामे बे भूतोना इंद्रो, माणिभद्र अने पूर्णभद्र नामे बे यक्षोना इंद्रो, भीम अने महाभीम नामे बे राक्षसोना इंद्रो, किंपुरुष अने किन्नर नामे बे किंनरोना इंद्रो, महापुरुष अने सत्पुरुष नामे बे किंपुरुषोना इंद्रो, अतिकाय अने महाकाय नामे बे महोरग गणना इंद्रो, अने गीतयशा अने गीतरति नामे बे गंधर्वोना इंद्रो, त्यां आवी पहोंच्या. अप्रज्ञप्ति (अणपत्री) अने पंचप्रज्ञप्ति (पणपन्नी) वगेरे अपर अष्टनिकायोना सोळ इंद्रो पण त्यां आवी पहोंच्या. तेमां संनिहित अने समानिक नामे बे अप्रज्ञप्ति (अणपत्री) ना इंद्रो, हरिधाता अने विधाता नामे बे पंचप्रज्ञप्ति (पणपनी) ना इंद्रो, वृषि अने कृषिपाळ नामे बे ऋषिवादितिकना इंद्रो, ईश्वर अने महेश्वर नामे बे पूतवादितिकना इंद्रो, सुवत्स अने विशाळक नामे बे क्रंदितिकना इंद्रो, हास अने हासरति नामे बे महाक्रंदितिकना इंद्रो, श्वेत अने महाश्वेत नामे बे कुष्मांडोना इंद्रो, पंचक अने पंचकपति नामे बे पंचकोना इंद्रो अने असंख्य चंद्र सूर्य ज्योतिष्कोना बे इंद्रो-एम सर्व मळीने चोसठ इंद्रो ते वखते मेरुपर्वत उपर एकठा मल्या. ते प्रत्येकना सेवक देवताओए सुवर्णना, रूपाना, रत्नमय, सुवर्णमणिमय, सुवर्णरूपुं तथा मणिमय अने मणिमांथी बनावेला, मणिरूपुं अने सुवर्णमांथी बनावेला अने मृत्तिकामांथी बनावेला योजन प्रमाण उन्मुख (उंचा नाळवावाळा) प्रत्येक एक हजारने आठ कलशो इंद्रनी आज्ञाथी उत्तम पुद्गलो ग्रहण करीने विकुा . अविरत पुरुषोनुं ए ज उत्तम फळ छे. पछी किन्नरो मधुरस्वरे गीतगानकरतां, अपरिमित देव तथा देवीओना गणो नृत्य करतां, नादसहित वाजींत्रो वागतां, उत्तम सुर-असुरो चामरो वीजतां, मंगल पाठको सुस्वरे मंगळपाठ करतां अने चारण-श्रमणो भावथी स्तुति करता अच्युतेंद्र बीजा बासठ इंद्रोए युक्त थई अने देवगणोथी वीटाई हर्ष साथे प्रभुने विधिथी स्नात्र अभिषेक कर्यो. पछी तेणे चंदन चर्ची सुगंधी पुष्पोथी प्रभुनी परम भक्ति अने शक्ति वडे पूजा करी. प्रथम इंद्रे पोते प्रभुने स्नान अने पूजन कर्या नही, तेने माटे पोते सुकृत कयुं नथी, एम तेणे मान्यु नही. पछी सौधर्मेंद्रनी जेम ईशानेंद्रे पोताना पांच रूप कर्या. एक रूपे प्रभुने उत्संगमां लई उत्तम सिंहासन उपर बेठो. बीजे रूपे छत्र अने बीजा बे रूपे बे चामर धारण कयां. पछी एक रूपे पुण्यरूपी वृक्षना मूलरूप एवं त्रिशूल उछाळवा मांड्यु. पछी सद्बुद्धिवाळा सौधर्मेए तेनी चारे दिशाओमां जाणे मूर्तिमान् वृष-धर्म होय तेवा सूर्यकांत मणिमय चार वृषभो श्री विमलनाथ चरित्र - चतुर्थ सर्ग 231
SR No.005931
Book TitleVimalnath Prabhunu Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJayanandvijay
PublisherGuru Ramchandra Prakashan Samiti
Publication Year
Total Pages378
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati
File Size7 MB
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