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________________ श्री विमलनाथ प्रभुनो जन्म महोत्सव थयां.' तत्काल अवधिज्ञानथी प्रभुनो जन्म जाणी ते सर्वे इन्द्रों घणां आनंदथी पुष्ट बनी गयां अने सुंदर आदरथी प्रभुना जन्मनी दिशा तरफ सात-आठ पगलां चाली नमन करी अने प्रभुनी स्तुति करी पोतपोताना आसनो तरफ पाछा आव्या. पछी सौधर्म इंद्रे पोताना सेनापति नैगमेषी देवने बोलावीने कां के, "सर्व देवताओने बोलावो." पछी इंद्रनी आज्ञाथी ते नैगमेषी देवताए नामथी अने अर्थथी योग्य एवी सुघोषा नामनी एक योजन प्रमाणवाळी घंटाने त्रणवार वगाडी. तेनी साथे ज एके ऊंणा बत्रीश लाख विमानोनी अंदर घंटाओना प्रति ध्वनिओ थई रह्या. ते सांभळी सर्व देवताओ तत्काल सावधान थई गया. ज्यारे ते घंटाओनो नाद विश्रांत थयो, त्यारे सेनापति नैगमेषीए आ प्रमाणे कर्तुं. "हे देवताओ, आजे शुभपर्वनो दिवस छे, कारण के श्री जिन भगवान्नो जन्म थयो छे. तेथी इंद्र पोते त्यां जवाना छे, माटे तमे पण सत्वर तैयार थइ जाओ." सेनापतिनां आ वचन सांभळी सर्वे सम्यकत्वधारी देवताओ रुचि-कांतिने धारण करतां तत्काल हर्षथी गमन करवा माटे सावधान थई गया. केटलाएक इंद्रनी आज्ञाना बळथी, केटलाएक वचनना बळथी, केटलाएक ते महोत्सव जोवानी इच्छाथी अने केटलाएक पोतानी स्त्रीना वशथी-एम सर्व देवताओ (अतित्वरायुक्त) सर्व रीते विविध वाहनोने लई त्यां जवाने उत्सुक बनी गया. ते काले इंद्रनी आज्ञाथी पालक नामना देवताए पांचसो योजन उंचुं, लाख योजन विस्तारवाळु, . अनेक स्तंभवाळु, वागती घुघरीओथी शोभतुं अने तोरणनी श्रेणीथी विराजमान पालक नाम- एक प्रधान विमान बनाव्यं. तेनी अंदर सौधर्मेंद्रने माटे पादपीठ, उल्लोच अने रत्नमय पीठिकाए सहित एवं एक रमणीय सिंहासन बनाव्यु. इंद्रना सरखा देवताओ, देवीओ, सभासदो अने अंगरक्षकोने माटे बीजा घणां पीठआसनो त्यां निर्माण कर्या. पछी स्वहित करनार सौधर्म इंद्र परिवार साथे पोताने योग्य आसने बेठो. ते काळे देवताओए गायन करवा मांड्यु. पछी प्रयाण करवामां चतुर एवो इंद्र बत्रीश लाख विमानवासी देवताओथी वींटाईने उत्तर दिशाने मार्गे तिझे चाली असंख्य द्वीपोर्नु उल्लंघनकरी नंदीश्वर द्वीपमां आव्यो अने ते (सद्) वासना युक्त सौधर्मेद्रे त्यां पोतानुं विमान संक्षिप्त कयु. पछी सर्व द्वीपोने ओळंगी नगरमां जई तेणे प्रभुना जन्मगृहने उंचे प्रकारे त्रण प्रदक्षिणा करी. ते गृहनी ईशान दिशामां पोता विमान राखी पोते सूतिकागृहमां गयो अने त्यां जिनभगवान्ने अने तेमनी माताने नमस्कार करी आ प्रमाणे बोल्यो "माता, 1. अथासनानि सर्वेषां, समकालं बिडौजसां । अचलनिस्वलान्युच्चैरचलाभाजिनि प्रभौ ॥१३४।। श्री विमलनाथ चरित्र - चतुर्थ सर्ग 229
SR No.005931
Book TitleVimalnath Prabhunu Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJayanandvijay
PublisherGuru Ramchandra Prakashan Samiti
Publication Year
Total Pages378
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati
File Size7 MB
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