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भावतत्त्वना स्वरूप उपर चंद्रोदरनी कथा
जाय छे." आ प्रमाणे भावथी प्रकाशमान एवो चंद्रोदर राजा उज्ज्वळ एवा केवळज्ञानने प्राप्त थयो, ते समये नजीकना देवताओए तेने मुनिवेश अर्पण कर्यो अने केवळज्ञाननो महिमा करवा सुवर्ण- कमळ बनाव्यु, ते कमळ उपर बेसी केवळी चंद्रोदर मुनिए विधिथी देशना आपी. तेथी अनेक मनुष्यो प्रकाशमान थई मार्गानुसारी थई गया. राणी कलावती, मंत्री धर्मरुचि तथा जिनदास अने बीजा धन्य लोकोए हर्षथी तपस्या ग्रहण करी. घणा लोको देशविरतिने अने बीजाओ सम्यक्त्वने प्राप्त थया. पछी ते चंद्रोदर केवळीए विहार करी धर्मनी प्रभावना करी; छेवटे अनशन लई देहनो त्याग करी ते चंद्रोदर केवळी आ पृथ्वी उपर शुद्धात्मा थई सिद्धिने प्राप्त थया.
ब्रह्मगुप्तिसूरि कहे छे, हे राजा पद्मसेन! एवी रीते भावनाने भावनारा अनेक जीवो सुखदायक मोक्षपदने पाम्या छे अने बीजाओ पामशे तेथी तमे भावना भावो. हे राजा एवी रीते श्री धर्मरूपी कल्पवृक्षनी सर्व विश्वने छाया करनारी चोथी भावना रूपी उत्तम महाशाखा में तेमने कही. ए चारे शाखाओमां तुं यथायोग प्रमाणे स्थिति कर के जेथी तारा जन्ममां तने आ संसारनो संताप थाय नहीं." आ (प्रकारनी देशना) सांभळी राजा पद्मसेन गौरवताथी गुरु प्रत्ये बोल्यो. "भगवन्, तमारा वचननुं यथा विधि आराधन करवाथी देवताओ पण नमस्कार करे छे. हवे विचार करवामां चतुर हृदयवाळा आप मने आ संसारमा जे धर्मनी योग्यता होय तेनो उपदेश आपो." गुरु बोल्या, "हे पृथ्वीपति, आ उज्ज्वळ एवा मनुष्यभवमां पापनो नाश करनारी सर्व धर्मोनी योग्यता रहेली छे तेमां तमारा जेवा सद्गुणी सम्यग्दृष्टि पुरुषोनी विशेष योग्यता छे. परंतु अनुक्रमे चडवाथी पडी जवाय नहि, माटे प्रथम तमे श्रावक धर्मनुं पालन करो. पछी विद्वतावाळी दीक्षा ग्रहण करजो." आ प्रमाणे कही ते दयाळु राजाने गुरुए आदरथी सम्यक्त्व सहित हितकारी एवी देशविरति दान आप्युं. राजा पद्मसेन 'सुदर्शनवडे युक्त अने सारा गुणवाळो जिनधर्मने प्राप्त करी घणो खुशी थई गयो ए घटे छे. पछी राजा पोताना स्थानमा गयो अने गुरुए पण विहार कर्यो. ज्ञानवान् राजा पद्मसेने पोताना हृदयमां आ प्रमाणे विचायु
"गायो ज्यारे गोचरमां जाय. त्यारे ते पोतानी रुचि प्रमाणे सरस अने नीरस एवं विविध प्रकारचें योग्य घास घणुं खाय छे, पछी ते पोताना स्थानमां आवी जे पोते पोतानी शक्ति प्रमाणे प्राप्त कयुं होय ते पोताना संवरनी वृद्धिने माटे 1. सुदर्शन-सारं दर्शन-सम्यग्दर्शन पक्षे सुदर्शन चक्र. 2. सुगुण-सारा गुण पक्षे सारी दोरी. श्री विमलनाथ चरित्र - तृतीय सर्ग
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