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भावतत्त्वना स्वरूप उपर चंद्रोदरनी कथा आ प्रमाणे सद्बुद्धिवाळो राजा चंद्रोदर तत्त्वरूपी अमृतनुं पान करी, गुरुने आदरथी नमी, पोताना स्थानमा जई, आनंदथी प्रिया वगेरेमाथी प्रेम छोडी दई अने पोताना पुत्रने राज्य आपी पोते ध्यान विधि करी नियमोना आदरथी सुंदर बनी संयमनो आचार पाळवामां लीन थई गयो. शुभ-आसन उपर पोताना अंगने धारण करी प्राणायाममां तत्पर बनी, प्रत्याहारथी निर्विकारी थई धारणाने धारण करवामां समर्थ थयो. पछी शुक्लध्यानने करनारो ए राजा समाधिना भारथी प्रकाशमान थई एकांत प्राप्त करी आ प्रमाणे भावना भाववा लाग्यो
रक्तनेत्रवाळो-कुकडो बाल्यवयमां अरिष्ट-नठारानो संसर्ग करे छे, पछी ज्यारे ते सपक्ष-पांखोवाळो थाय छे, त्यारे ते संग छोडीने वनवास करे छे. आ हंस जड बुद्धिवाळो बनी नित्ये मानसनुं वृथा सेवन करे छे, के जेने लईने ते रजस्ने भजनारो थाय छे, कारण के ते मानसमां पंकज-कमळोनी श्रेणीओ रहेली छे. हे हंस, जड जळना समूहवाळा एवा ते मानसरूप मानसनो तुं त्याग कर के जेनाथी तारा देह-पंकनो नाश थई जशे. ज्यारे मेघ-जाल आवे. त्यारे मानस मलिन थाय छे, तेथी त्यां रहेली वस्तु लोकोथी सारी रीते जाणी शकाती नथी.
घन-मेघमांथी नीकळेला 'तमनी अंदर स्थिति करनारा एवा में पोतानी ज जाते सुदिवसे पण धिक्कार भरेलुं. दुर्दिनपणुं कर्तुं छे. हे आत्मा, लोकोने हास्य करावे तेवा नट समान समग्रवेषोने ग्रहण करवानुं तुं शा माटे राखे छे? हवे तो तुं तारा स्वरूपने भज. आ देह 'काकपक्षने धारण करनारो छे. अने तुं हंस पोते निरंजन छे, तो नीचना संगना दोषथी तुं शा माटे मृत्यु पामे छे? केटलांएक कर्म रजरूप छे अने केटलाएक मळरूप छे. अने तुं नीरज अने निर्मळ रूपवाळो छे. तो अहो, तुं एवा कर्मोनी साथे केम मळी जाय छे? अरे आत्मा, तुं मारी समीप रहेलो छे. छतां में तने ओळख्यो नहीं, पण हवे आपण बनेनी एकता थई छे, तो हवे तुं मारी पासेथी केम जाय छे? ज्यारे रूपमा रूपनो प्रवेश थाय छे अने पोतानामां जीव-आत्मानुं दर्शन थाय छे, त्यारे चित्त अने आत्माना स्वरूपोनो एक शेष थई 1. हंस एटले हंस पक्षी अने पक्षे आत्मा. हंस-आत्मा जडबुद्धिवाळो अने हंस पक्षी जड
जळनी बुद्धिवाळो बनी मानस एटले आत्मापक्षे मन अने हंस पक्षे सरोवर. हंसपक्षी पंकज-कादवमांथी थयेला कमळोनी श्रेणीने लईने सरोवरमा रजस्-रजवाळो थाय छे अने
आत्मा मानस-मनमां कर्मरूप पंक-मळने लईने रजस-रजोगुणवाळो थाय छे. 2. मेघजाळ-वादळानुं जाल चड़ी आवे त्यारे मानस सरोवर मलिन थाय छे अने मे-मारा
अव-पाप कर्मनुं जाल ची आवे त्यारे मन मलिन थई जाय छे. 3. घन-घाटा मेघ-मारा पाप कर्ममाथी नीकळेला. 4. तम एटले अंधकार पक्षे अज्ञान. 5. दुर्दिन एटले वादळार्थी छवायेलो दिवस. (पक्षे दुर्भाग्य). 6. अर्थात् आत्मा-जीवे अनेक योनिमां अवतार लेवा रूप वेषो काढ्या छे. 7. काकपक्षी एटले कागडानी पांख पक्षे केशना कानशीआ. 8. एकशेष-एकरूप.
श्री विमलनाथ चरित्र - तृतीय सर्ग
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