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________________ भावतत्त्वना स्वरूप उपर चंद्रोदरनी कथा प्रवेश थयो; तेमां परणीने आवेला राजकुमारनो तो विशेष सुखरूप प्रवेश थयो, राजाए हर्षथी विवाहना करता पण अधिक उत्सव करी राजकुमारने लक्ष्मीथी युक्त एवं एक उत्तम मंदिर आप्यु. राजकुमारने त्यां पोताना घरना करता अधिक सुख हतुं छतां पण तेने चेन पडतुं न हतुं कारण के वासःश्वसुरगेहे यनशोभायै महात्मनां ।।४८५।। महान् पुरुषोने ससराने घेर वसवू ए शोभा माटे थतुं नथी. ___एक वखते मातापिताना चरण कमळमां भ्रमरूप एवा कुमारे हर्षथी पोताना वतन तरफ चालवाने माटे राजानी आज्ञा मागी त्यारे कार्य जाणनारा राजाए तेने वधू सहित जवा माटे आज्ञा आपी अने तेज समये हर्षथी हाथी, घोडा वगेरे कुमारने अर्पण कयाँ; पोतानी पुत्रीने वस्त्राभरणथी सन्मान करी राजाए आ प्रमाणे का, "वत्से तारे कदिपण जिन भगवाननुं ध्यान छोडवू नहि, दान पूर्वक भोजन करवं, अभक्ष्य एवा अनंतकाय वगेरेनो त्याग करवो, न्यायथी मेळवेलुं घणुं द्रव्य सात क्षेत्रोमां वापर. रुचे तेटलु वखतसर भोजन करवू, स्वाभाविक रीते उदयना कारणरूप एवो आर्यजननो संसर्ग राखवो. ब्रह्मचर्यरूपी राजाना रक्षण माटे किल्लो बनाववा नठारी स्त्रीओनो संग करवो नहिं. सदा समकित धारण करवं, कुकर्म वर्जी देवं, क्रोधने निष्फळ करवो अने सपत्नीजन (शोकय) उपर मत्सर करवो नहिं." आ प्रमाणे राजानी विविध शिक्षा सांभळी राजपुत्री बोली. "तात, आपे कहेल सर्व निर्दोष शिक्षण में सांभन्युं, परंतु प्राये करीने अबळाने बुद्धि होती नथी, तेमां वळी बालाना हृदयमां तो ते विशेषपणे होती नथी, माटे यथार्थ नामवाळा धर्मरुचि नामे जे आपणा मंत्री छे, तेमने मारी साथे मोकलो के जे मने सदा धर्मनो उपदेश करे." आ सांभळी राजाए विचायु के, "पुत्री- आ वचन घणुं सुंदर छे. परंतु मारे राजकुमारने ते कहेवू जोईए." आ प्रमाणे विचारी राजाए कुमारने कडं, "राजकुमार, आ मारो मंत्री धर्मरुचि सदा ब्रह्मचारी अने धर्मनो उपदेशक छे, तेथी तमारी आज्ञाथी हुं तेने मारी पुत्रीनी साथे मोकलुं छं." कुमारे तेनो स्वीकार कर्यो, एटले ते मंत्री कुमारनी साथे चाली नीकल्यो. राजकुमार सैन्यनी साथे केटलेक दिवसे पोताना नगरमां आवी पहोंच्यो. तेना पिताए दुष्टकर्मथी रहित एवा पुत्रने बे स्त्रीओ साथे आवेलो जाणी अति हर्षथी तेनो प्रवेशोत्सव को. पछी राजाराम कुमार चंद्रोदरनी उपर राज्यनो मोटो बोजो मूकी पोते गुरुनी पासे दीक्षा ग्रहण करी. पछी गुणोथी राजी थयेलो ते चंद्रोदर राजा राज्यनी चिंता मंत्रीनी उपर आरोपण करी पोते पवित्र राजपुत्री उपर अनुरागी थईने रह्यो.।।५०० ।। पेली विद्याधरनी पुत्रीने तो दृष्टिथी पण जोतो नथी, आ खबर जाणी राजपुत्री 174 श्री विमलनाथ चरित्र - तृतीय सर्ग
SR No.005931
Book TitleVimalnath Prabhunu Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJayanandvijay
PublisherGuru Ramchandra Prakashan Samiti
Publication Year
Total Pages378
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati
File Size7 MB
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