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________________ भावतत्त्वना स्वरूप उपर चंद्रोदरनी कथा कांतियुक्त अने श्रमने जीतनारो कुमार चंद्रोदर उत्सुक थयो नहि अने अभिमानी बन्यो नर्हि. ते तरत ज आसन उपरथी उभो थयो, धनुष्य अने भाथुं लई यंत्रनी पासे आणी ते चंद्रोदर कुमारे निर्भय थईने हर्षथी राधावेध करी दीधो. ते पछी राजा रत्नसेने मनोहर हृदयवाळा ते कुमारने सर्व परिवार साथे उत्सवपूर्वक नगरनी अंदर प्रवेश कराव्यो. राजानुं सर्व कुटुंब विवाह विधिनी इच्छाथी हर्षाकुळ बनी गयुं, परंतु राजकन्यानुं मुख श्यामवर्णी थई गयुं, ते जोई राजाए कह्युं. "वत्से, आज पूर्णीमाने ठेकाणे अमावस्या केम देखाय छे? सर्व कष्टोने नाश करनारी तारी प्रतिज्ञा जेणे पूरी करी छे, ते आ धन्य चंद्रोदर कुमार छे, ते कुमार सौजन्य गुणनुं पात्र, परोपकारी, कलावान्, सुरूपी, कुलीन, धनवान्, पराक्रमी, नीतिमान्, सौम्य, विद्यावान् अने विनयी छे. हे शुभे, तेवो प्रिय मळतां तारा मुख उपर श्यामता केम रहे? जो तारा हृदयमां सपत्नी थवानी शंका रहेती होय, तो ते विषे चिंता करवी नहीं, कारण के आ कुमार पुण्यवान् छे" राजाना आ वचनो सांभळी ते कन्या बोली, मने सपत्नीनी चिंता थती नथी, परंतु मारी प्रतिज्ञा पूर्ण थई नहीं, तेनी चिंता थाय छे. मारा हृदयमां जे राधावेधनी प्रतिज्ञा छे, राधावेध जुदो ज छे." ते सांभळी तेणीनी माता रत्नमंजरी विस्मय पामीने बोली - "पुत्री! ते बुद्धिथी कल्पेलो ते राधावेध केवो छे?" तेणी बोली-"ते राधावेध अंतरंग (अंतरनो) अने सिद्धिने आपवामां कारणरूप छे. सांभळो, राधावेधमां सत्कर्म अने दुष्कर्म रूपी बे चक्रो छे. ते विवेकीपुरुषे जाणवा योग्य छे. आ सृष्टि अने संहारने भजनार ते दुनीयारूपी तेमां आरा छे. जे सृष्टिरूपी आरा छे. ते सुखे वेदनीय छे अने जे संहार रूपी आरा छे, ते दुःखे वेदनीय छे. तेमां संदेहना समूहरूप यंत्रनी साथै सूक्ष्म लक्ष्यरूपे परतत्त्व रहेलुं छे. जे पुरुष विचार रूपी बाण वडे ते लक्ष्यने भेदी शके ते मारो प्रिय छे. बहारना राधावेधने करनारा तो घणा पुरुषो छे, तेमनी साथे मारो प्रयोजन नथी. ' आ प्रमाणे महेलना गोख उपर रहेल ते बंने माता अने पुत्री वार्ता करतां हतां, तेवामां ते राजमार्गे चाल्यो जतो कोई पुरुष आ प्रमाणे श्लोक बोल्यो"राजपुत्रीनो शुद्ध अने प्रिय एवो आ राधावेध चंद्रोदर कुमार जाणे छे. बीजो कोई जाणतो नथी. ए निश्चय छे." आ उपश्रुति जेवो श्लोक सांभळी राणी रत्नमंजरी अने राजपुत्री हर्षथी ते गोखनी जाळीमांथी दृष्टि नांखी. त्यां मार्गमां बंदीजनना वृंद साथे चंद्रोदर कुमारने जतो जोयो. रूप वगेरेथी पोतानी पुत्रीनी साथे तेनी सर्व ते समानता जोई राणी खुशी थई अने एक दासीने आज्ञा करी के, "जा ते क्यां श्री विमलनाथ चरित्र - तृतीय सर्ग 11 167
SR No.005931
Book TitleVimalnath Prabhunu Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJayanandvijay
PublisherGuru Ramchandra Prakashan Samiti
Publication Year
Total Pages378
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati
File Size7 MB
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