SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 190
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ भावतत्वना स्वरूप उपर चंद्रोदरनी कथा वत्स! चिंतामणि रत्नना जेवो आ मनुष्य जन्म प्राप्त करीने तुं निश्चिंत रहीश नहिं. ते रत्नमांथी चिंतित पदार्थने शोधी लेजे. घणां पुरुषो अनने मृतिका अने सुवर्ण रूपे वर्णवे छे. तेवा अन्नमांथी शरीर बनेलुं छे तेथी ते शरीर तत्समान मृत्तिका तथा सुवर्ण समान छे, जेओना मृत्तिका रूप शरीर छे, ते मृत्तिका वगेरेमा जाय छे अने जेमना शरीर सुवर्णरूप छे, तेओ सुवर्णपणाने पामे छे. हे कुमार! तुं पूर्ण कलाधारी थयो छे, तो हवे तारे सुवृतपणुं धारण कर, अने तमनुं ग्रहण निवारवं. कारण के ते तेना कलंकरूप छे. उत्तम पुरुषो गुरुपासेथी सूत्र मेळवी पोताना यौवन वयना कर्मने साधे छे, परंतु स्त्रीरूप पापनां वनने साधता नथी. जेओ तंत्रने प्राप्त करी (शास्त्र-विद्या प्राप्त करी) मान धरीने ते माननो नाश करता नथी, ते पुरुष विषयोमा रहीने अने प्रमादमां पडीने क्षय पामी जाय छे. बुध, गुरु, कवि, वक्र, कलावान् अने शूर एवा पण पुरुष वारुणीना संगथी नीचे जाय छे अने अस्त पामी जाय छे. तो पछी बीजानी शी वात करवी? जे आ लक्ष्मीरूपी रसोई छे, ते अंगने पुष्टि आपनारी मानेली छे, परंतु ते भोगववाथीखावाथी चैतन्यने आपनारी थती नथी. कारण के ते 'सागरमांथी उत्पन्न थयेली छे. उद्यमवाळा पुरुष- दीर्घ एवं शास्त्र शत्रुओने जीती ले छे, परंतु प्रमदाने अने प्रमादने वश थयेला पुरुष- ते शास्त्र तेवू थतुं नथी. क्रोध वगेरे योद्धाओ बहार अथवा रणभूमिमां राखवा जोईए. जो तेओ अंतःपुरमा (हृदयनी अंदर) पेसी गया, तो तेओ विपरीत कार्य करे छे, हे वत्स! तुं गुरु-वडीलोनी आगळ नम्र थईने रहेजे के जेथी तारी गुरुता थशे, कारण के जे स्तब्ध (अक्कड) रहे छे, ते छंदना अक्षरनी जेम आ पृथ्वी उपर लघुताने पामे छे. जे प्राणी पोताने 10जीवन आपनार माणसने नमन करतो नथी, ते सरोवरनी पाळ उपर रहेला वृक्षनी जेम अधोमुख थईने नरकमां पडे छे. तुं हमेशां 1 समुद्र थईने रहेजे. कारण के तुं लक्ष्मीनो जनक उत्पादक छे. बुद्धिमान होय, पण जो अमुद्र-12मुद्रारहित होय तो 1. चंद्ररूप थयो छे. 2. सुवृत्त एटले सारं वर्त्तन चंद्रपक्षे सारी गोळ आकृति. 3. तम अज्ञान- ग्रहण न करवं चंद्रपक्षे तम-राहुनुं ग्रहण न कर. 4. बुध डाह्यो पक्षे बुधग्रह. गुरु-मोटो पक्षे गुरुग्रह, कवि-कविता करनार पक्षे शुक्र, वक्र, वांको पक्षे मंगळग्रह, कलावान्-कलावाळो पक्षे चंद्र, शूर शूरवीर पक्षे सूर्य. 5. वारुणी-मदिरा पक्षे पश्चिम दिशा. 6. नीच ग्रहो थाय छे. 7. सागर एटले विष सहित पक्षे समुद्र. 8. गुरुता-मोटाई. 9. छंदनो अक्षर स्तब्ध एटले पदने अंते होय तो गुरु छतां लघु गणाय छे. 10. सरोवरनी पाळना वृक्षने जीवन आपनार जल छे जीवननो अर्थ जळ अने जीवित थाय छे. 11. समुद्र-मुद्रा छाप चारित्र-सद्वर्तन सहित पक्षे सागर. 12. मुद्रा छाप-रहित होय ते नाणुं चालतुं नथी पक्षे सद्वर्तन रहित. 160 श्री विमलनाथ चरित्र - तृतीय सर्ग
SR No.005931
Book TitleVimalnath Prabhunu Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJayanandvijay
PublisherGuru Ramchandra Prakashan Samiti
Publication Year
Total Pages378
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati
File Size7 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy