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भावतत्त्वना स्वरूप उपर चंद्रोदरनी कथा उत्सववाळी थई, मारुं देशमंडळ पृथ्वीना कुंडलरूप थयु, मारी पुरी धर्मरूपी राजानी सुशील अंतःपुरीना जेवी थई, मारो जन्म भाग्यना जन्मरूप थयो, आ वर्ष हर्षदायक थयु, आ मास रमणीय रमा-लक्ष्मीना वासरूप थयो, आजथी मारा दुःखनो अद्भुत नाश थयो, आ पखवाडीयुं शत्रुने नाश करनार थयु. आ दिवस धर्मथी प्रकाशमान थयो, आ पहोर काम-इच्छा पूरवाथी सुंदर बन्यो अने आ क्षण पण क्षण-उत्सव आपनार थयो, कारण के साधु पुरुषोनुं दर्शन मनुष्योने भाग्य योगे ज थाय छे. हे प्रभु, मित्र-सूर्यनो उदय थाय तो पण अंध मनुष्यने तेनां कर्मने लीधे ईष्ट वस्तुनुं दर्शन थतुं ज नथी. फळ तथा पत्रोने आपनार वसंत ऋतु आवे तो पण केरडाना वृक्षने पुष्पो आव्या छतां पण पत्रो आवतां नथी. सर्व प्रकारना धान्योने उपकार करनार वरसाद आवतां पण जवासाना झाड क्षमाने-भजनारा थया, छतां पण दुर्भाग्ये सुकाई जाय छे. हे दयानिधि, तेवी रीते तमारुं आगमन थतां पण मारुं दुःख न जाय, तेमां मारा कर्मनो ज दोष छे, बीजा कोईनो दोष नथी. तथापि आळसु लोकोनी वच्चे गंगा नदी आवी मळी, तो ते सर्वना पापने हणनारी थती नथी, पण ते सर्वना संतापने तो हणनारी थाय छे." आ वचनो सांभळी मुनि बोल्या, "हे प्राज्ञ, चिरकाळ ध्यानरसवाळा तारा हृदयमा जे संताप थाय छे, तेने माटे मने कौतुक थाय छे. कळाओना कलापवडे युक्त अने 'गोस्वामी एवा राजारूप तमारामां आवी उंचा प्रकारनी अने वामपणाने अनुसरनारी मोटी मलिनता होय ए आश्चर्यनी वात छे. शुद्धपक्षना उदयना अध्यक्षरूप एवा हे राजा! तमारा गोभरवडे सर्व प्राणीओनो संताप नाश पामे छे, तो आ शुं बन्यु? ते तमारा हृदयनी वात जणावो." राजा बोल्यो, "भगवन्, मने दुःख थवाचं कारण मारी अपुत्रता छे, कारण के लौकिक आगममां कर्तुं छे के, "जे अपुत्र होय तेमनी सारी गति थती नथी." महाव्रतधारीओमां मुगटरूप एवा मुनि बोल्या, "हे राजन्, खेदातुर थईश नहीं. तने लागेलो बधो मेल चाल्यो जशे, ते विषे अंतःकरणने कोमळ करे तेवू एक दृष्टांत सांभळ
रागी पुरुषोने आनंद आपनाएं दुरपार नामे एक नगर छे. कवीश्वरो जे भूमिगृह (भोयरा) ने अधोलोक पाताळ कहे छे, शिरोगृह-अगाशीने उर्ध्वलोक कहे छे अने मध्य भूमी-वचला माळने मध्यलोक कहे छे. सर्व भुवनने वश करनार अने भवनमां उदय पामेलो उग्रशासन नामे विख्यात राजा ते नगरनुं 1. गोस्वामी-पृथ्वीना स्वामी पक्षे जलना स्वामी. 2. गोभर-वाणीनो समूह अने जळनो समूह. श्री विमलनाथ चरित्र - तृतीय सर्ग
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