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________________ पूर्णकळशनी दीक्षा अने तपश्चर्या सांभळी राजा पूर्णकलशे सर्वनी संमति लई पोताना पूर्णकुंभ नामना पुत्रने घणा सुखवाळा राज्य उपर बेसाड्यो. पछी सर्व जिनालयोमां अट्ठाई उत्सव कराव्यो, संघ, वात्सल्य अने शासननी प्रभावना करी अने चारे तरफ अमारी पटहनी उद्घोषणा करावी. दीनजनोने दान अने स्वजनोना समूहने तेणे मान आप्यु. पछी मोटी समृद्धि साथे श्रीप्रभास आचार्यनी पासे जई तेणे दीक्षा अने मोक्षना सुखने आपनारी शिक्षा हर्षथी ग्रहण करी. ।।१०३४।। प्रथम तप फल जाणी अने ते तपथी कर्मनो क्षय मानी ते राजर्षि तेनी अंदर विशेषपणे उद्युक्त थया. तेणे निरंतर सेवेला त्रण त्रण उपवासोथी ज्ञान, दर्शन अने चारित्रनुं आराधन कयु, अनुक्रमे एकाशन, निर्विकृति (नीवी) आंबेल अने अनशन करी सोळ दिवसे कषायजय नामनो तेणे तप कर्यो. पुरिमड्ड, एकाशन, प्रत्येक इंद्रिये नीवि, आंबेल तथा उपवास वडे तेमणे ईंद्रियजय नामनो तप कर्यो. मन, वचन अने कायाना त्रण योग प्रमाणे नीवि, आंबेल तथा उपवासवडे योगसिद्धि करवानी इच्छाथी तेमणे योगसिद्धि नामनो तप आचर्यो. उपवास, एकाशन, एकसिकत्थक, एक स्थान, एकदत्ति नीवी, आंबल अने अष्टकवल एम एक-एक कर्म प्रत्ये करी ते कृतार्थ मुनिए अष्टकर्मसूदन नामनो तप कर्यो. शुक्लपक्षमा आठ उपवास अने आंबेलना आठ पारणा-एम सोळ दिवसे तेमणे सर्वांगसुंदर नामनो तप कर्यो. एवी ज रीते कृष्णपक्षमां ग्लान मुनिनी शुश्रूषा करवामां तत्पर एवा ते मुनिए कर्मरूपी रोगने . छेदवाने नीरुक् नामनो तप कर्यो. एकांतरा बत्रीस आंबेलवडे तेमणे हर्ष अने उत्साहथी पंचमभूषण नामनो तप को. एक पडवे बे बीज अने त्रण त्रीज अने बंने पखवाडीयानी बीजी पंदर पूर्णिमा सुधीनी तिथिओना उपवासो वडे तेमणे सुखसंपत्ति नामनो तप कर्यो. ए तपने लोको वृद्धवृक्षोपवासना नामथी कहे छे. केवली भगवंतोने नव पद्म होय छे. ते प्रत्येक पद्मे आठ उपवास करवा वडे तेमणे पद्मोत्तर नामनो तप को. जेमनु भविष्यमां भद्र-कल्याण थवानुं छे एवा ते संयमीए पंचोतेर उपवास अने पचवीस पारणा वडे भद्र नामनो तप कर्यो. एकसो छन्नु उपवास अने ओगणपचास पारणाथी तेमणे महाभद्र नामनो तप कर्यो. एकसो पंचोतेर उपवास अने पचवीस पारणाथी तेमणे भद्रोत्तर नामनो तप कर्यो. त्रणसोने बाणुं उपवास अने ओगणपचास पारणाथी तेमणे सर्वतोभद्र नामनो तप को. एकांतरा साडत्रीस उपवास अने आदि अने अंतमां अट्ठम करी तेमणे धर्मचक्रवाळ नामनो तप कर्यो. तेमणे मोक्षना सुखनी इच्छाथी छन्नु उपवास अने चोसठ पारणा वडे वर्गतप कर्यो. आदि तथा अंते अष्टम करी एकांतरे साठ श्री विमलनाथ चरित्र - द्वितीय सर्ग 141
SR No.005931
Book TitleVimalnath Prabhunu Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJayanandvijay
PublisherGuru Ramchandra Prakashan Samiti
Publication Year
Total Pages378
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati
File Size7 MB
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