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- पूर्णकळशनी दीक्षा अने तपश्चर्या पोते रोगी थई गया छे अने तमे ते राज्यना धारक छो, तेथी तमने तेडी लाववाने माटे अमोने मोकल्या छे." आ सांभळी कुमार पूर्णकलश खेदातुर थई गयो अने तरत ज तेणे पेला यक्ष, स्मरण कयु. यक्षे तत्काळ आवी कुमारने नगरमां पहोंचाडी दीधो. त्यां कुमारनो मोटो उत्सव पूर्वक नगरमा प्रवेश कराव्यो. पछी पिता मलयकेतुए शुभ मुहूर्तमां तेने पोताना राज्य उपर बेसाड्या. ते पछी राजा मलयकेतु पोते पंच नमस्कार मंत्रना स्मरणथी पाप रहित अने निःस्पृह थई सुखे देवलोकमां गयो.
आ प्रमाणे पूर्णकलश अनुक्रमे चार राज्योनो स्वामी थयो अने साधक मित्रसेन सेनापतिने मोकली बीजा घणां राज्यो पण तेणे साध्य कराव्या. पूर्वे जे विवाहित स्त्रीओ पुत्र सहित रहेली हती, तेओने पोतपोताना स्थानमांथी बोलावी लीधी. पछी बीजी पण घणी गुणवती पत्नीओने ते परण्यो अनुक्रमे ते बीजी राणीओने पण नीतिमान भुवनमां अजेय अने पोताना बळथी राजाओने ताबे करनारा पुत्रो थया. महाराजा पूर्णकलशे पृथ्वी उपर सर्व स्थळे श्री जिनधर्मने स्थापित कर्यो, न्याय प्रवर्त्ताव्यो अने दयादान विशेषपणे प्रवर्ताव्यु. धर्म, अर्थ अने कामनी आराधना करतां अने प्रजानुं पालन करतां पोते घणां लाखो वर्षो सुखमां प्रसार कां.
एक वखते राजा पूर्णकलश वनक्रीडा करी पाछो फरतो हतो. तेवामां मासक्षमणने पारणे भिक्षा फरता एक मुनीश्वर तेना जोवामां आव्या. ते मुनिना सर्व अंगो तपथी शोषाई गयां हता. तेमना वस्त्रो जीर्ण हतां, ते ईर्यासमिति वडे युक्त हता अने दृष्टिने आनंद उपजावता हता. तेमने जोतां ज राजा पूर्णकलशे अश्व उपरथी जलदी नीचे उतरी ते मुनिने भक्तिथी प्रणाम कां. मुनिए स्वभाव प्रमाणे तेने धर्मलाभनी आशिष आपी. ते मुनिनुं स्वरूप सारी रीते अने विशेषपणे नीरखी राजा पूर्णकलश पोताना हृदयमां आ प्रमाणे चिंतववा लाग्यो, "प्रशंसा आपनारुं, पुण्यने उत्पन्न करनारुं अने सज्जनोने घणो आनंद आपनाएं आq रूप में पूर्वे क्यांय पण जोयुं छे." आम विचारता एवा तेणे जातिस्मरणथी जाण्यु के, "आवं मुनिरूप तो पूर्वभवे मारुं ज हतुं." ते पछी मने स्वर्गनुं सुख थयुं हतुं अने पछी हाल आ राज्य मन्युं छे, तेथी जेनुं पुष्टफळ प्रत्यक्ष जोवामां आव्युं छे, एवं तप हवे हुं करीश." आq चिंतवी ते महाराजाए मुनिने कां के, "भगवन्, तमारा दयाळु गुरु क्यां छे?" मुनि बोल्या, "प्रभास नामना ते मारा आचार्य उत्तम शिष्योनी साथे सुमसार नामना उद्यानमां समाधिपूर्वक रहेला छे." ते
श्री विमलनाथ चरित्र - द्वितीय सर्ग
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