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________________ पूर्णकळशनी कथा, विष्णुशर्मा ब्राह्मणनी कथा, कथानो उपनय अंतःकरणने अत्यंत भेदी नाखे तेवो स्ववृत्तांत तेने जणाव्यो. ते सांभळी ते वहाणपतिए पोताना परिवारने जणाव्यु के, "समुद्रमांथी आश्चर्यकारी एवो वडवाग्निनो मोटो संताप उत्पन्न थई आवे छे."।।९४८।। आ कथानो उपनय प्रसन्नचंद्रसूरि कहे छे, हे राजेंद्र, तमे सावधानपणे आ कथानो परमार्थ (उपनय) सांभळो. जे विष्णुशर्मा ब्राह्मण कहेलो छे, ते आ संसारी जीव समजवो. तेनी जे शीलवती स्त्री ते बुद्धि समजवी. जे रत्नद्वीप ते अढीद्वीप जाणवो. जे पेलो वृद्ध ब्राह्मण उपदेश आपनार मन्यो हतो, ते गुरु समजवा. जे रत्नसुरी देवी ते शुभ कर्मनी प्रकृति जाणवी अने जे चिंतामणि ते मनुष्य भव जाणवो. आ संसार ते समुद्र समजवो. जेम प्रमादथी हाथमां ग्रहण करेलो चिंतामणि चाल्यो गयो, एवी रीते प्राणीनो मनुष्य भव प्रमादथी चाल्यो जाय छे. ते पुनः मळवो दुर्लभ थई पडे छे. हे राजा! जेओ चौद पूर्वधारी होय, पण जो तेओ प्रमादने वश थाय छे, तो तेओ अनंतकाल सुधी निगोदमा रहे छे. एवी रीते ऋजुमति मनःपर्यव ज्ञान सहित अनेक जीवो (प्रमादवशे पतित थयेला) सतत सूक्ष्म निगोदमां प्राप्त थाय छे, तो पछी बाकीना विषे तो कहेवू ज शुं? तेथी प्रमादने छोडी दई श्री जिनभगवानने कहेला धर्मर्नु आचरण करो. प्राणीओ वृद्धावस्थामां दीक्षाने योग्य नथी तेने माटे कयुं छे के, "बाळक, नपुंसक, वृद्ध, क्लीब (पुरुषार्थहिनबायलो). जड, जुंगित (खोडवाळो) रोगी, राजद्रोही, चोर, आंधळो, काम करनार (मजूर), गांडो, मूर्ख, दुष्ट, बंधनमां पडेलो, सेवक, करजदार अने 'शैष्यनिष्फेटक ए अढार प्रकारना पुरुषो दीक्षाने योग्य नथी. अने उपर कहेला अढार प्रकारनी साथे नाना छोकरावाळी अने गर्भिणी एम वीस प्रकारनी स्त्री दीक्षाने योग्य नथी. त्रीजा वेदवाळा नपुंसकने दीक्षा कोई वखते आपवानी कही छे, पण ते कारणने लईने पण आपी शकाती नथी. हे राजा, तमे संयमने प्राप्त करी मोक्ष मार्गने प्राप्त करो. तियचो पण नियमवाळा होय, तो देवलोके जाय छे. कारण के देव अने नारकीने मनुष्य तथा तिर्यंचगति प्राप्त थाय छे. तिथंचो मोक्ष सिवायनी चार गतिने प्राप्त करे छे. अने मनुष्यो पांच गतिने प्राप्त करे छे. सर्वथी उत्तम एवा मनुष्यो मोक्षमा उत्पन्न थाय छे. अने ते मोक्ष विना मनुष्यो दीनजनमां पशुओथी पण हलका कहेवाय छे. हे राजा, तमे आ मध्यम वयमां ज्ञान, दर्शन अने चारित्र प्राप्त करो, कारण के ते सामग्री प्राप्त थवी दुर्लभ छे." 1. शिष्यने भगाडनार के आपसमां भेद करावनार, आज्ञा वगर दीक्षा आपवी. 136 श्री विमलनाथ चरित्र - द्वितीय सर्ग
SR No.005931
Book TitleVimalnath Prabhunu Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJayanandvijay
PublisherGuru Ramchandra Prakashan Samiti
Publication Year
Total Pages378
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati
File Size7 MB
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