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श्री धर्मतत्त्व उपर अमरसिंहनी कथा देव तत्त्व सुज्ञेय छे, कारण के ते देव एक सर्वज्ञ ज छे. अने गुरुतत्त्व अनेक वेषने धारण करनारुं होवाथी जाणवू दुर्घट छे, तेथी अहिं सुगुरु- कांईक स्वरूप कहेवामां आवे छे. पुरुष तद्दन गुरु वगरनो सारो पण ते कुगुरुवाळो सारो नहि. जे द्रव्य, क्षेत्र, काल, भाव, व्यवहार, निश्चय, उत्सर्ग, अपवाद आवक अने खर्च जाणे छे, जे शुद्ध पंच महाव्रतधारी, पांच समितिने धारण करनार, पांच प्रकारना आचारने पाळनार अने त्रण गुप्तिथी विराजित छे, जे स्थिर, कषायोथी मुक्त, रागद्वेषरहित, अभिग्रहधारी धीर, अप्रमादी अने हितकारी छे, जे हमेशा ऊपदेश आपवामां तत्पर, सिद्धांतरूप समुद्रना पारगामी, अन्य शास्त्रोना ज्ञाता अने बुद्धिनी वृद्धिथी युक्त छे, जेनुं वचन ग्रहण करवा योग्य छे, जे सौम्य, अवसरना जाण, गुणोवडे आश्रित, वक्ता, स्मरण शक्तिवाळा अने एकवार जोयेलाने ओळखी लेनार छे, जे स्मरण वगेरेथी युक्त, कृतज्ञ कोमळ वाणी बोलनार, चतुर, पूर्ण एवी पांच इंद्रियोना आधाररूप, विचारो जाणनार अने निर्भय छे अने जे गंभीर, 'अप्रतिश्रावी, बहारना संगने छोडावनार, ग्रंथकार, दयाळु, युक्तिमान् अने विषयोमा विरक्त छे. ईत्यादि गुणोथी युक्त, सर्व प्रकारना कदाग्रहोथी रहित अने तत्त्वज्ञ एवा गुरुने स्वहितने ईच्छनारा पुरुषोए आनंदथी सेववा. आ प्रमाणे गुरुतत्त्व समजवू. एवी रीते में तमोने द्रष्टांत साथे काईक गुरुतत्त्व कडुं छे.
दयामूल एवा धर्मतत्व- स्थूल स्वरूप उच्च प्रकारना सुखना कारणरूप एवा जीवदयामय धर्मने आचरतो जीव । अमरसिंहनी जेम बे प्रकारचें शिव-कल्याण प्राप्त करे छे.
अमरसिंहनी कथा जंबूद्वीपमां आवेला भरतक्षेत्रना मध्यभागे रहेलुं अने अमरपुरीना जेQ सुंदर अमरपुर नामे नगर छे. ते नगरमां सुग्रीव नामे राजा हतो. ते राजाने जुदी जदी राणीथी उत्पन्न थयेल समरसिंह अने अमरसिंह नामना बे कुमारो हता. राजा सुग्रीव परलोकवासी थतां तेनो जयेष्ठ पुत्र समरसिंह राजा थयो. पण ते शिकारना व्यसनने लईने ते राज्य- कार्य करतो न हतो. बीजो कुमार अमरसिंह दया तथा दाक्षिण्यवाळो अने परोपकार करवामां तत्पर रही पोतानो काल निर्गमन करतो हतो. ।।६००।। एक वखते अमरसिंह लोकोनी साथे उद्यानमां क्रीडा करवाने 1. कांईपण आलोचनादिक संबंधी गुह्य वात जेमनी पासेथी बहार नीकळी न जाय एवा
गंभीर-सावधान.
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श्री विमलनाथ चरित्र - द्वितीय सर्ग