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तप उपर निर्भाग्यनी कथा विजय थई शकतो नथी. ज्यारे सूर्य उत्तर दिशानो आश्रय करे छे, त्यारे ते तेजनो निधि बने छे अने तेज सूर्य जो दक्षिणाशा-दक्षिण दिशाने भजे छे, तो ते आ लोकमां वसुहीन थई जाय छे. आ लोकमां तपस्याथी आकाश गामिनी शक्ति वगेरे लब्धिओ मळे छे अने परलोकमां शिवसंपत्ति प्राप्त थाय छे. पूर्वे दुष्कृत्यो कर्या होय तो पण जो जीव आदरथी दुष्कर तप आचरे छे, तो ते निर्भाग्यनी जेम उंचा प्रकारना सुखोने भोगवे छे."
आ वखते राजा पद्मसेने प्रश्न कर्यो के, "ते निर्भाग्य कोण हतो? तेणे केयूँ तप कयुं हतुं? अने ते केवी रीते सुख पाम्यो?" ।।४२३।। श्री ब्रह्मगुप्त गुरु बोल्या
निर्भाग्यनी कथा अहिं धातकी खंडमां प्राग्विदेह नामे (पूर्वमहाविदेह) क्षेत्रना आभूषणरूप अचळ नामे एक गाम छे, तेमां सिंह नामे एक ते ग्रामनी चिंताकरनार-नायक हतो तेने शील वगेरे गुणोथी शोभती सिंहला नामे पत्नी हती. ते सिंहने सुखरूपी जळनी नीकना जेवो घणो काळ गयो नहीं तेटलामां तो (अल्प समयमा ज) तेना दुर्भाग्य योगे तेनी पत्नी सगर्भ थई, त्यां कोई नठारा कर्मयोगे शत्रुओए आवी ते बाळकना पिताने मारी नाख्यो अने तेना घरनी साररूप वस्तुओने हरी लीधी. आ बनावथी सिंहला नठारी स्थितिमां आवी गई. दुःख आपवाथी विकराळ एवो समय आवतां सिंहलाने पुत्र जनम्यो. ते समये विवेकी लोकोए विखवादथी विचार कर्यो के, "आ पुत्र गर्भमां आवतां ज तेनो पिता द्रव्य साथे विनाश पाम्यो, तेथी कल्याणना विस्तारने छोडावनारा आ पुत्रनुं नाम निर्भाग्य राखो." तेवा विषम नामथी ते लोकोमा प्रख्यात थयो. माता सिंहला लोक नीतिने लईने ते पुत्रने उछेरवा लागी. अने बाळक निर्भाग्यने हर्ष रहित आठमुं वर्ष बेठे, त्यारे तेनी माता मृत्यु पामी गई. पछी ते बाळक पोताना प्राण- गुजरान करवा "मार्ग रहित भिक्षा मागवा लाग्यो. अभाग्ययोगे गुणोना समूहथी रहित एवा तेने गाममां कोईपण भिक्षा आपतुं न हतुं तेथी ते कंगाळ ते गाममांथी नीकळी पृथ्वी उपर भमवा लाग्यो. कोई देवग्राम नामना गाममां आवी चडतां ते तेना पिताना दत्त नामना कोई मित्रना जोवामां आव्यो. तेणे तेने कर्वा के, "तुं सारा आचरणथी 1. उत्तर काष्टा-उत्कृष्ट तप. 2. दक्षिणाशा-दक्षिण दिशा अने पक्षे दक्षिणा-द्रव्यदाननी आशा. . 3. वसुहीन-किरण रहित पक्षे द्रव्य रहित. 4. चिंता करनार-संभाळ राखनार-रक्षण करनार. 5. मार्ग रहित एटले उन्मार्गे, अथवा ज्यां मळे त्यांथी. 104
श्री विमलनाथ चरित्र - द्वितीय सर्ग