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________________ शीलव्रत उपर शीलवतीनी कथा माळा तमे क्यांथी मेळवी? में घणी शोध करावी तो पण आ देशमां कोई ठेकाणेथी मने तेवां पुष्पो मन्या नहीं अने तमारा कंठमां ते पुष्पोनी माळा देखाय छे तेनुं शं कारण?" अजितसेन बोल्यो, "राजेंद्र, आ देशमां आवा भव्य पुष्यो मळतां नथी; परंतु ज्यारे में घेरथी प्रयाण कयु, ते दिवसे मारी पत्नीए आ पुष्पो मारा कंठमां आरोप्यां छे." "मंत्रिन् ते दिवसना पुष्पो अम्लान केम रह्यां छे?" राजाए पुनः प्रश्न कर्यो. "मारी पत्नीना, विश्वना मनने हरनारा शीलना प्रभावथी ते अम्लान रह्यां छे." अजितसेने उत्तर आप्यो. आ सांभळी राजाए विचार्य के अहा! जरूर ते स्त्री देवता होवी जोईए, ते 'सक्षमाचारणा छे. परंतु सुरालयस्वर्गथी दूर रहेनारी छे. राजा अरिदमनने तेना उत्कृष्ट राज्यनी अंदर सेंकडो मंत्रीओ रहेला छे. परंतु तेओनी अंदर चार मंत्रीओ चतुर कहेवाता हता ते चारेमा बुद्धि वडे अजितसेनथी चडीयातो पहेलो मंत्री कामांकुर, बीजो ललीतांगद, त्रीजो रतिकेलि अने चोथो अशोक हतो. ते वखते कार्य करनारा राजाए ते चार मंत्रीओने एकांते बोलावी जाणे पोते वादी होय तेम आ प्रमाणे कडं, "साहसिक अने कठोर एवा हजारो पुरुषो छे, परंतु तेओ कामदेवना प्रसंगमां अबळाओ आगळ पण निर्बळ देखाय छे; आपणा मंत्री अजितसेनने एवी पत्नी छे के जे सार्थ-समूह वगरनी छे, ते छतां ते कामदेवरूपी योद्धाथी जीती शकाती नथी. अहो! केव॑ आश्चर्य!" ते चारे मंत्रीओ बोल्या, "कामदेवरूपी योद्धाथी ते अजितसेननी स्त्री केम न जीताय? जळनी अंदर कदि माछलुं रह्यं होय तो तेने कोण जाणी शके? ते विषे प्रत्यक्षप्रमाण होय तो अमो मानीए. जे अनुमानप्रमाण छे, ते प्रत्यक्षप्रमाणने अनुसरीने रहेतुं छे, एम कहेवाय छे." ते चारे मंत्रीओनां आवा वचन सांभळी विद्वाननी शोभाने धारण करनार अने गौरव-मानना स्थानरूप एवो राजा आ प्रमाणे बोल्यो-"ए अजितसेननी स्त्री कल्याणकारी प्रत्यक्ष लक्षण ए छे के, तेणीना शीलना प्रभावथी सदा अम्लान रहेनारी पुष्पमाळा ते मंत्री अजितसेनना सुंदर कंठमां उंचे प्रकारे रहेली देखाय छे." एक द्रव्य तरफनी अभिलाषाने लईने अजितसेन उपर शत्रुभाव करनारा ते चारे मंत्रीओ बोली उठ्या के, "स्त्रीजातिनी विषमता कोण जाणी शके?" ते पछी तेओमांथी चोथो अशोक मंत्री बोल्यो के "आ स्फुरित बुद्धिवाळा त्रणे मंत्रीओ अहिं रहे अने हुँ 1. जे देवता होय ते क्षमाचारणा पृथ्वी उपर चालनार न होय अने ते स्वर्गथी दूर न होय, परंतु आ स्त्री सक्षमाचारणा-पृथ्वी उपर चालनारी पक्षे क्षमाना आचरणवाळी छे अने स्वर्गथी दूर रहेनारी छे. श्री विमलनाथ चरित्र - द्वितीय सर्ग 93
SR No.005931
Book TitleVimalnath Prabhunu Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJayanandvijay
PublisherGuru Ramchandra Prakashan Samiti
Publication Year
Total Pages378
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati
File Size7 MB
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