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प्रस्तावना
संस्कृत अने मागधी भाषामां प्राचीन महात्माओ, कविओए 'जनसमूहना कल्याण माटे अनेक जातना प्रवर्तनो करेलां छे, जे चार अनुयोगमां वर्तमानकाळे आपणी दृष्टिए पडे छे. जेमां बीजा अनुयोग करतां चरितानुयोगने प्राधान्यपणुं आपवानुं कारण एज छे के, तेनाथी बाळ जीवो सरलता तेमज सहेलाईथी, सदाचार अने सद्बोधना शिक्षणो मेळवी शके छे, अने जेटली असर कथानुयोगथी थाय छे तेटली बीजाथी थती नथी.
आवा पूर्वाचार्योना संस्कृत प्राकृतमां गद्य पद्यात्मक, रचेला चरित्रो सरल भाषामां जनसमूहनी सामे मूकवामां घणा लाभो समायेला छे. ते वखतना धर्म भावनाना अद्भुत अने समृद्धिशाळी तत्त्वो, ज्ञान, दर्शन, चारित्र अने तप के धर्माराधनाना फळरूपे जे ते समये प्रसिद्धि पाम्या होय तेनुं माहात्म्य वर्तमान काळमां आवा ग्रंथोरूपे प्रगट करवाथी तेना वांचको - जिज्ञासुओनी धर्मश्रद्धा वृद्धि पामवा साथे व्यवहारिक उन्नतिना कारणभूत नीतिना मार्गनुं अनुसरण अथवा दिग्दर्शन उत्तम प्रकारे थाय छे.
जैन कथानुयोगमां त्यागी महात्माओ, तथा संसारी जीवो वगेरे अनेक उत्तम पुरुषोनां चरित्रो आवे छे, तेमां पण जिनेश्वरो - तीर्थंकरो महाराजाओनां चरित्रो तो उत्तमोत्तम होय छे. वर्तमान समये आ क्षेत्रमां जिनेश्वर भगवाननो अभाव होवा छतां आवा पवित्र पुरुषोनी प्रतिमाना आलंबन वडे सेंकडो भव्यात्माओ भवजळ तरी गया छे; तेवा उत्तम महापुरुष तीर्थंकरना महान पदने प्राप्त करवामां तेवा पुरुषोए पूर्वे केवा केवा प्रकारनी धर्माराधना करी, कर्मनिर्जराना विपुल मंत्रोने केवी रीते साधीने तीर्थंकर नामकर्म उपार्जन करी सिद्ध परमात्मा थई शक्या. अनादि काळथी आत्माने लागेला कर्मरूपी कादवने दूर करी केवी जातना आत्मभोगे परम पद मेळवी शक्या तेनुं दिग्दर्शन अने अनुभव थवा माटे आवा महान पुरुषोना चरित्रो जीवोनी दृष्टि मर्यादामां आववा जोईए अने तेवा हेतुने लईने ज आ सभा मुख्यत्वे करीने वर्तमान चोवीसीना तीर्थंकर प्रभुनां पूर्वाचार्यो रचित चरित्रोनुं शुद्ध गुजराती भाषांतर करावी समाज सामे मूके छे.
पूर्वाचार्यकृत चरितानुयोगथी बीजा पण लाभो छे; ते ए के भूतकाळमां थई गयेल ते ते महान् पुरुषोना विद्यमान वखते ते समयमां देशनी सामाजिक, नैतिक, राजकीय अने धार्मिक प्रवृत्ति केवी हती, तेनी जाण थवा साथे वर्तमान काळमां ते ते परिस्थितिओने समयानुसार केटली बंधबेसती स्थिति छे, केवुं अने
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