SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 103
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ रत्नचूडकुमारना कथानो उपनय तेनुं पकवान बनाव्यु. पुत्र स्थावर ते पकवान जमवाने जेवामां बेसतो हतो, तेवामां कोई मासोपवासी मुनि पारणाने माटे तेने घेर आवी चड्या. ते बाळके मुनिने जोई आ प्रमाणे हृदयमां चिंतव्युं, "अरे! मारे आवें भोजन क्याथी? अने आवा मुनि पण क्यांथी? गुणना विस्तारवाळो एवो हुँ दाता अने भोजन ए बनेनो योग प्राप्त थयो छे, हवे तेनी अंदर मारा चित्तने सत्वर जोडी दउं. हुं आ पात्रने दान आपुं के जेथी त्रणनो योग थाय. कारण के दाता दान अने पात्र-ए त्रणनो योग घणो दुर्लभ छे. आq चित्तमां विचारी तेणे ते मुनिने निदान-नियाणा रहित थई ते दान आपी दीधुं. मुनिए ते शुद्ध अन्न जाणी तेना आग्रहथी ग्रहण करी लीधुं. पेली बे पडोशणोए घी तथा अन्न दानना अनुमोदनथी पुण्य उपार्जन कर्यु, पण ते बंनेने एक वखते जातिमद थई आव्यो, दानना प्रभावथी ते स्थावरना घरमां कांईक द्रव्य वगैरेनी प्राप्ति थई आवतां तेणे फरीवार पण पात्रदान आप्यु हतुं. हे रत्नाकरशेठ, पछी ते स्थावर आयुष्यनो क्षय थतां त्यांथी च्यवीने तमारो आ रत्नचूड पुत्र थयो छे. पेली जे बे पडोशण स्त्रीओ हती, ते जातिमद करवाथी, बे महावेश्या थई छे. पूर्वना दानना पुण्यना प्रभावथी ते रत्नचूडने विपत्तिनो आश्रय थतां पण संपत्ति थई छे. धर्मना माहात्म्यथी शं थतुं नथी? तेने माटे का छे के, "धर्मथी सारा कुळमां जन्म शरीरे आरोग्य, सौभाग्य, आयुष्य अने बळ प्राप्त थाय छे, धर्मथी निर्मळ यश, विद्या, अर्थ अने संपत्ति थाय छे. धर्म मोटा . जंगलमांथी अने मोटा भयमांथी सदा बचावी ले छे. सम्यक् प्रकारे आराधेलो धर्म स्वर्ग तथा मोक्षने आपनार थाय छे." बीजी रीते आ रत्लयूडनी कथा उपर उपनय घटाये छे "हे रत्नाकरशेठ, जे आ तमारो पुत्र रत्नचूड छे, ते संसारी जीव समजवो, जे उपदेश आपनारी वेश्या छे, ते सर्व कर्मोनी अंदर प्रेरणा करनारी कर्मप्रकृति समजवी. जे रत्नचूडनुं वहाण उपर चडवू, ते जीवनो गर्भावासमां प्रवेश जाणवो. जे अनीतिनगरनी प्राप्ति ते हीनकुलमां जन्म समजवो. जे सर्वस्वने लई लेनारा चार धूर्त वणिको कह्या, ते धर्मरूपी द्रव्यने हरी लेनारा क्रोधादिक चार कषायो जाणवा. जे पेलो पादुका करनारो कारीगर ते राग समजवो. जे जुगारी हतो ते द्वेष समजवो. जे चार वाद-विवाद करनारा हता, ते चार प्रकारनी विकथा समजवी. जे रणघंटा वेश्या हती, ते पोतानी (भव्यजीवनी) सारी बुद्धि समजवी।।११००।। अने जे यमघंटा अक्का ते कपटना स्थानरूप मिथ्यादृष्टि समजवी. एवी रीते सर्व वृत्तांत अंतरंगरूपे पण समजवानो छे. ए रत्नचूडरूप श्री विमलनाथ चरित्र - प्रथम सर्ग 73
SR No.005931
Book TitleVimalnath Prabhunu Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJayanandvijay
PublisherGuru Ramchandra Prakashan Samiti
Publication Year
Total Pages378
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati
File Size7 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy