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________________ 314 भं मानदश ड्धर्म जीने सुहेल, सुगुर नहि मानु उसे चुना प्यारे नेमा प्रतिज्ञा शु खावे के ? उहेव, हुगु, नें सुहेब सुधर्म सुधर्म सिवाय लाव ने बहूमान नाहू ४३. या प्रतिज्ञा नमे खलीशुद्ध चाजोने साथै सांघाली मानीने पापता हो तो यहां योधा गुलास्थाननो विवेक न याच्यो होचतो हव्यथी समडिन खावेलु उहेवारी लावधी सर्माउन खायुं नधी शुद्ध વ્યવહારી खात्मा चामेलो होय सा३ ६ याधा गुलास्थाननु समकित तेने चायनो जनुबंध नही रहेलोग सत्मा, निश्ययनयधी समदिन दुर्ध रीते यमाय ? साहेज :- निययनयथी समकित खत्यारे भली समक शडाचू चा चामी शकाय नहि ग्रंथले करवा बोधे गुलस्थान डे खावधुं कथडे निध्ययनयनुं समाडेत खत्यारे शड्य नही रखने के डोा निश्यच नयशी समडित चाग्यानो हावो करे तो तेः અભણ छे वा छे, निश्चय नच की यांच्या सॉलजी तमारे गलराया नु नधी, ठोंगी लेखे निध्ययनच या खायरा चेहा न उरेले श्रध्धाने साथी शहूधा मानतो नधी, नेने विचार वांगी धनें वर्तन नहोनो सजध समन्वय को स्यामा करायला खामी होचतो तेनी व्यायामांची तमने ते जडातू राजशे निध्ययनय तमने उद्देश है नमे याय मानों छी रमने 7. शाले न ठेवीरीने वानगीमा ठेर छे ते कल्या भने तेने खाचाय छे छत्ता छोडो नहिते यछी
SR No.005862
Book TitleAnukampadan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorYugbhushanvijay
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages400
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati
File Size8 MB
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