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________________ ॥ ढाल ॥ केसर चंदन घसी घणो, मांहि मेलो घनसार । रत्नजड़ित कचोलडे, धरिये चित्त उदार ॥ १॥ गुरु पद पूजा भवि जन, भव दव ताप समाय । दूजी पूजा कीजीये, अनुभव लच्छी पाय ॥ २॥ ॥ श्लोक ॥ परमुदारगुणं गुरुपूजनं जगदूपाधिचयाद् रहितं जितम् । परमपूज्यपदस्थितमर्चत विनयदर्शनकेसरचन्दनैः || १ ॥ ओं ह्रीं श्रीं श्रीपरमगुरु श्रीहीरविजयसूरीश्वरेभ्यश्चन्दनं यजामहे नमः ॥ २ ॥ अथ तृतीय पुष्पपूजा । ॥ दोहा ॥ त्रीजी पूजा कुसुमनी, करियें निर्मल चित्त । पूजा करतां भावि लहे, उत्तम अनुभव वित्त ॥ १ ॥ ॥ ढाल ॥ > जाई जूई केतकी, उमणो मरुओ सार मोगरो चंपक मालती, श्रीगुरु चरणे धार बोलसिरी जाइ फूलसुं, केवडो सरस गुलाब शुद्ध सुगंधित फूलें करी, गुरु पूजो भरी छाब ॥ २॥ ॥ श्लोक ॥ सरसपुष्पसुगन्धितमर्चितं सकलवाञ्छितदायकचर्चितम् सकलमङ्गलसंभवकारणं गुरुसुपादपपूजनधारणम् ॥ १॥ ओं ह्रीँ श्रीँ श्रीपरमगुरुश्रीहीरविजयसूरीश्वरचरणकमलेभ्यः २२० ॥ १॥ पुष्पं यजामहे नमः ॥ ३॥
SR No.005849
Book TitleHir Swadhyaya Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahabodhivijay
PublisherJinshasan Aradhana Trust
Publication Year1998
Total Pages356
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati
File Size6 MB
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