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मय रानी रोह नगर स्वामी, शिकार को छोड़े सुख कामी सुलतान सिरोही का नामी, उनका हिंसादि छुड़वाया ॥ १॥
अकबर सुबह में खाता था, सवा सेर कलेवा आता था । चिड़ियों की जीभ मंगाता था, उससे उसका दिल हटवाया ॥ २ ॥
कई पशु पक्षि को मारा था, और कई पर जुल्म गुजारा था । अकबरका यह नित्य चारा था, उसके लिये माफी मंगवाया ॥ ३ ॥
पिंजर से पक्षि छुड़वाये, कई कैदी को भी छुड़वाये । कई गैर इन्साफ को हटवाये, कइयों का जीवन सुलझाया ॥ ४॥
काला कानून था जजिया कर, जनता को सतावे दुःख देकर । अकबर को मजहब समझा कर, जजिया कर पाप को धुलवाया ॥ ५॥
पर्यूषण बारह दिन प्यारे, किसी जीवकों कोई भी नहीं मारे । अकबर यूं आज्ञा पुकारे, फरमान पत्र गुरु ने पाया
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॥ ६॥
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संक्राति के रवि के दिन में, नव रोज मास ईद के दिन में । सूफियान मिहीर के सब दिन में, जीवघात शाही ने रुकवाया ॥ ७ ॥
फिर जन्म मास अपना सारा, जीव घात यूं छै महिना टारा । चारित्र सुदर्शन भय हारा, गुरु चरण में अक्षत पद पाया ॥ ८॥
काव्यम्-हिंसादि०
मंत्र—ॐ श्रीँ० अक्षतान् समर्पयामि स्वाहा ॥ ६॥
सप्तमी नैवेद्य पूजा दोहा
जगदगुरु ने जीवन में, कीना तप श्रीकार I तेले बेले सैकड़ों, व्रत भी चार
हजार 11 १॥
आंबिल निवी एकासना, और विविध तप जान 1. प्रति दिन बारह द्रव्य का, करे गुरुजी परिमाण ॥ २॥
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