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________________ तीरथ का टैक्स हटवाया, जजिया कर भी मिटवाया । शत्रुजय तीर्थ-फिर पाया, गुरु आधिन बने सारा ॥ इसी० ॥ ८॥ अकब्बर ने समझ लीना, बड़ा फरमान लिख दीना । हुकुम सालाना छै महिना, यही उपकार तुम्हारा ॥ इसी० ॥ ९॥ जगत पर कीना उपकारा जगदगुरु आप हैं प्यारा । अकबर ने यूं उच्चारा, दिया बीरूद जयकारा ॥ इसी० ॥ १० ॥ गुरु उपदेश को पीकर, अकब्बर का हुकुम लेकर । जिता शाहजी बने मुनिवर, बना शाही यती प्यारा ॥ इसी० ॥ ११ ॥ नमे सुल्तान आजमखान, सिरोही देवड़ा सुल्तान । नमे प्रताप टेक प्रधान, गुणों का है नहीं पारा ॥ इसी० ॥ १२ ॥ मुगल सम्राट दरबारा, खुला शुरू में गुरु द्वारा । . पीछे जिनचन्द्र सिंह प्यारा, गये सेनादि गुरु सारा ॥ इसी० ॥ १३ ॥ गुरु चारित्र सीतारा, विमल दर्शन का आधारा । बिना गुरु कोई नहीं चारा, गुरु दीपक से उजियारा ॥ इसी० ॥ १४ ॥ काव्यम्-हिंसादि० मंत्र-ॐ श्री दीपकं समर्पयामि स्वाहा ॥ ५॥ षष्ठी अक्षत पूजा। दोहा _..'. जगदगुरु करे जगत में, भ्रातृ प्रेम प्रचार । अहिंसा के उपदेश से, अहिंसक बने नरनार ॥ १॥ (ढाल-६) अहिंसा का डंका आलम में, श्री जगद्गुरु ने वजवाया । महावीर का झंडा भारत में, श्री हीरसूरी ने फहराया ॥ टेर ॥ २१३]
SR No.005849
Book TitleHir Swadhyaya Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahabodhivijay
PublisherJinshasan Aradhana Trust
Publication Year1998
Total Pages356
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati
File Size6 MB
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