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पंचम दीपक पूजा
दोहा
अब अकबर गुजरात में, भेजे मौदी कमाल । बोलावे गुरु हीर को, फत्तेहपुर खुशहाल ॥ १॥ संवत् सोलसो चालिसा, आये श्री गुरु हीर । बने गुरु उपदेश से, धर्मी अकबर मीर ॥ २॥
(ढाल-५). (तर्ज-घड़ी धन्य आजकी सबको, मुबारक हो २) इसी दुनियां में है रोशन, "जगद गुरू' नाम तुम्हारा ॥. कई को दीनी जिनदिक्षा, कई को ज्ञान की भिक्षा । कई को नीति की शिक्षा, कई का कीना उद्धारा ॥ इसी० ॥ १॥ लूंकापति मेघजी स्वामी, अठ्ठाइस शिष्य सहगामी । सूरि चेला बने नामी, करे जीवन का सुधारा ॥ इसी० ॥ २॥
कीड़ी का ख्याल दिलवाया, अजा का इल्म बतलाया । मुनिका मार्ग समझाया, संशय सुल्तान का टारा ॥ इसी० ॥ ३॥ शाही सन्मान तो पाया, पुस्तक भण्डार भी पाया । बड़ा आग्रामें खुलवाया, अकब्बर नाम से सारा ॥ इसी० ॥ ४॥ तपगच्छ द्वेष दिलधारा, करे कल्याण खटचारा । उसी का गर्व उतारा, सभी के दुःख को टारा ॥ इसी० ॥ ५ ॥ फतेपुर, आगरा, मथुरा, शुरिपुर लाभ मालपुरा । भुवन प्रभु के बने सनूरा, मोगल के राज्य में सारा! | इसी० ॥६॥ करे कोई गुरू पूजन, दीये हाथी हरे उलझन. ।
करे वस्त्रादि से लुंछन यतिम याचक का दिल ठारा ॥ इसी० ॥७॥ CITIRERIRLIT