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श्री दर्शन विजय रचित
जगद्गुरु श्रीहीरविजयसूरीश्वरजी की बड़ी पूजा
प्रथम जल पूजा दोहा
जय जय सुमति जिणंदजी, जय सुपार्श्व जिनन्द ।
जय जय आदिश्वर प्रभो, जय जय पार्श्व जिनंद ॥ १ ॥
जय जय सूरि वाचक मुनि, जिन शासन शणगार । जगगुरु हीरसूरीश्वरा, युग प्रधान अवतार ॥ २ ||
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जय चारित्रविजय गुरु, चरणमें शीष नमाय 1 जगगुरु की पूजा रचूं, सबही को सुखदाय ॥ ३
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(ढाल १ )
(तर्ज- आवो आवो आदीश्वर बांबा, ग्रहो इक्षु रस दान ) आवो आवो ओ प्यारे सज्जन, करो गुरु गुणं गान ॥ टेर ॥ महावीर के पाट परंपर, हुये श्री युगप्रधान । वचनसिद्ध और उग्र तपस्वी, जगचंद्रसूरि जाण ॥ आवो० ॥ १ ॥
जिनके चरनमें शीष झुकावे, मेदपाट का राण । तपा तपा कह के बुलावे, जैत्रसिंह बलवान ॥ आवो० ॥ २ ॥
श्री देवेन्द्रसूरीश्वर त्यागी, देव पूज्य श्रुतवान ।
कर्मग्रन्थ आदि शास्त्रों का, किया जिनने निरमाण || आवो० ॥ ३ ॥
दादा साहेब धर्मघोषसूरि, त्यागी युगप्रधान । महामंत्रवादी व प्रभाविक हुये धर्म के प्राण ॥ • आवो० ॥ ४ ॥
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