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________________ जीजीया टेक्स हटायो सूरीश्वर दया दान उपदेश करंद । पशु पक्षी अरू बंदीवान कई, आप किया तत्काल स्वछंद ॥ ५॥ कर अंग ऋतु भूमी के वर्षे, अविचल कायोत्सर्ग धरं । भाद्रव सुदी एकादशी दिनको, ऊना ग्राममें स्वर्ग लहंद ॥ ६ ॥ दहन समय में बिना ऋतुभी, ततक्षण तरू सहकार फलंद । चमत्कार वो देखके जनता, पाई मन में हर्ष अमंद ॥ ७॥ भवि भेटत ही पाप कटंद । स्थम्भन तीर्थ भव्य मुर्ति ऊनामें भी जगद्गुरू की प्रतिमा जिम साक्षात सूरिंद ॥ ८ ॥ ' अथ सप्तम नैवेद्य पूजा जगद्गुरू ीरसूरि राया मंदिर नुतन कई बनाया । जिर्णोद्धार कराया आबू, आदि गिरिस्थान ॥ ५ ॥ अथ अष्टम फल पूजा द्वितीय प्रभावकाचार्य श्री, हीरविजय हितकार । . कलश प्रभावकशाली इन जैसा नहीं कोई दूसरा पाया I . पूजन भविभाव भक्ति से प्रभावकाचार्य गुण गाया ॥ १॥ "हीरविजयसूरिरास" रचना, इशु वसु रस निशिराया । "कवि ऋषभदास श्रावक" को, मुनि मण्डल अपनाया ॥ २ ॥ आरती दिल्लीपति शाह अकबर से जीव हिंसा तजवाया । जगद्गुरू पदं धारक, हीरसूरि राया 11 30 11 6 २०५
SR No.005849
Book TitleHir Swadhyaya Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahabodhivijay
PublisherJinshasan Aradhana Trust
Publication Year1998
Total Pages356
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati
File Size6 MB
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