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जबलगिं इंद्र आवसि अहनिस करइ, संभाल सुरगुरुगुनी; मोहते,
सचिवकी
सीख,
जबलगिं
गगनमंडलमहल
सोभ सकल संवाद सातुं मुनी; जबलगिं भूरिभूपाल भूषण भले, जोतिजुत जनति मनि रोहणाचल खनी. तबलगिं० गगनमंडलि रहइ अजब जब लंगिं, सबल सकल सुखकारिणी जोति रविचंदकी; धरति धरणीतलं गहनगिरिसंकुले
जबलगिं
पीठपर
चंडभुजगिंदकी;
जबलगिं चतुर चिहु षंड चति चमकंती, थित्ति सुरलोकि सुरइंदकी;
राजकी तबलगिं हेम . कंहि
प्रगटी
पदवी
हीरजी पट्टि प्रभु,
विजयसेनसूरिंदकी.
सवालक्खसोवीर सिंधु सरसा सोरठ सण मरु मालव मेवाड मोट महरट्ट मगहि भण, कामरूप कालिंग कीर कुंतल कण कुंकण गूजर गउड गिरिंदगंध गंगातटगंजण;
इणि देशि दस दिसं
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जयकरी
हेमविजय कवियण
श्रीविजयसेनसूरिंदकी कीरति कमला गहगही.
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कही,
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