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________________ भावार्थ :- रूप, रस, गन्ध, स्पर्श और शब्द ये पाँच गुण हैं । इन में मनोज्ञ में राग और अमनोज्ञ में द्वेष उत्पन्न होता है । ये राग-द्वेष ही संसार के मूल कारण हैं । जो पुरुष आत्मा के यथार्थ स्वरूप को नहीं जानता है । वह माता-पिता, स्वजन-सम्बन्धी आदि में ममत्व स्थापित करके उनके सुख के लिए अपने सुख को तिलाञ्जलि देकर समय असमय का ख्याल न करके कठिन परिश्रम करता है । हिंसा, झूठ, चोरी और कपट आदि पाप कार्यों के द्वारा धन का संग्रह करता है, वह यह नहीं सोचता कि 'जिनके पालन के निमित्त मैं घोर पाप करने में भी नहीं हिचकिचाता हूँ वे लोग मेरी आत्मा के लिए इस लोक और परलोक में क्या सहायक हो सकते हैं ? उनके जीवन भी तो अत्यल्प और अत्यन्त चञ्चल है । फिर इस स्वल्प जीवन के लिए इतना घोर पाप क्यों किया जाय' यह अज्ञानी जीव इतना भी नहीं सोचता है । अतः विवेकी पुरुष को किसी में भी ममता तथा राग-द्वेष न रखते हुए अपने कल्याण के लिए प्रयत्न करना चाहिए ॥ ६२ ॥ ये दीर्घाऽऽयुष्का भवन्ति तेऽपि जराभिभूता मृतकतुल्या, तद्यथा तंजहा - सोयपरिणाणेहिं परिहायमाणेहि, चक्खुपरिणाणेहि परिहायमाणेहि, घाणपरिणाणेहिं परिहायमाणेहिं, रसणापरिणाणेहिं, परिहायमाणेहिं, फासपरिण्णाणेहिं परिहायमाणेहिं, अभिक्कंतं च खलु वयं संपेहाए तओ से एगया मूढभावं जणयइ ॥६३॥ ... तयथा - श्रोत्रपरिज्ञानैः परिहीयमानैः, चक्षुःपरिज्ञानैः परिहीयमानैः, घ्राणपरिज्ञानैः परिहीयमानैः, रसनापरिज्ञानैः परिहीयमानैः, स्पर्शपरिज्ञानैः परिहीयमानैः, अभिक्रान्तं च खलु वयः सम्प्रेक्ष्य तत इन्द्रिय-विज्ञानापचयाद्वयोऽतिक्रमणाद्वा स एकादाऽऽत्मनो मूढभावं जनयति यदि वा तानि परिहीयमाणानि श्रोत्रादिविज्ञानानि तस्य मूढभावं जनयन्तीति ॥ ६३ ॥ ____ अन्वयार्थः- सोयपरिणाणेहिं - शेन्द्रियनी Aicemalनी शति. परिहायमाणेहिं - जीन-क्षी 25 य त्यारे चक्खुपरिणाणेहिं - यक्षरिन्द्रियनी भवानी-पानी शक्ति पूरिहायमाणेहिं - क्षी. 25 1य त्यारे धायपरिणाणेहि-परिहायमाणेहिं - प्रोन्द्रियनी सुंधवानी शक्ति क्षीर य त्यारे रसनापरिणाणेहिं परिहायमाणेहिं - २सनेन्द्रिय (4) नी २स अडए। ४२वानी शति क्षी1 25 14 त्यारे फासपरिणाणेहिं परिहायमाणेहिं - स्पर्शन्द्रियन! शान क्षी! 1य त्यारे च - भने तओ - भान पछी अभिक्कतं - अइक्कतं - वाली वयं - मायुष्यने संपेहाए - पीने खलु - निश्चयथा से - ते मनुष्य एगया - यारे या२४ मूढभाव - भूढताने जणयइ - प्राप्त ४२ छ. . श्री आचारांग सूत्र 9000000000000000000000000000( ५३
SR No.005843
Book TitleAcharang Sutram Pratham Shrutskandh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVikramsenvijay
PublisherBhuvan Bhadrankar Sahitya Prachar Kendra
Publication Year
Total Pages372
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati & agam_acharang
File Size9 MB
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