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________________ भावार्थ :- बहुत से अन्यतीर्थि वनस्पतिकाय को अचेतन मानते हैं और उसके छेदन-भेदन में हिंसा न होना बताते हैं किन्तु उनकी यह मान्यता अज्ञानमूलक है क्योंकि जैसे हमारे चेतनायुक्त शरीर में उत्पत्ति, वृद्धि, चेतना, चय, उपचय आदि धर्म पाये जाते हैं वैसे ही वे सारे धर्म वनस्पतिकाय में भी पाये जाते हैं। इसलिए वनस्पति चेतन है, अचेतन नहीं ॥ ४६ ॥ एवं वनस्पतेश्चैतन्यं प्रदर्श्य तदारम्भे बन्धं तत्परिहाररूपविरत्यासेवनेन मुनित्वं प्रदिपादयन्नुपसञ्जिहीपुराह एत्थ सत्थं समारंभमाणस्स इच्चेए आरंभा अपरिण्णाया भवंति, एत्थ सत्थं असमारंभमाणस्स इच्चेए आरंभा परिण्णाया भवंति, तं परिण्णाय मेहावी णेव सयं वणस्सइसत्थं समारंभेज्जा, णेवण्णेहिं वणस्सइसत्थं समारंभावेजा, णेवण्णे वणस्सइसत्थं समारंभंते. समणुजाणेज्जा, जस्सेए वणस्सइसत्थ-समारंभा परिण्णाया भवंति से हु मुणी परिण्णायकम्मे ॥४७॥ .. त्ति बेमि ॥ अत्र शस्त्रं समारभमाणस्य इत्येते आरम्भा अपरिज्ञाता भवन्ति, अत्र शस्त्रमसमारभमाणस्य इत्येते आरम्भा परिज्ञाता भवन्ति, तत् परिज्ञाय मेधावी नैव स्वयं वनस्पतिशस्त्रं समारभेत, नैव अन्यैर्वा वनस्पतिशस्त्रं समारम्भयेत् नैव अन्यान् वनस्पतिशस्त्रं समारभमाणान् समनुजानीयात् । यस्यैते वनस्पतिशस्त्रसमारम्भाः परिज्ञाता भवन्ति स खलु मुनिः परिज्ञातकर्मेति ब्रवीमि ॥ ४७ ॥ अन्वयार्थः- सूत्र नं.30 न। अनुसार समो . ભાવાર્થ :- સૂત્ર નં. ૩૦ માં અપકાયનું વર્ણન કરેલ છે અને આ સૂત્રમાં वनस्पतियर्नु पनि छ. ३ माटो ४ ३२४ छ. quी सर्व मर्थ समान छ. ॥४७॥ भावार्थ :- इस सूत्र का भावार्थ सूत्र नं. ३० के अनुसार है । उस सूत्र में अप्काय का वर्णन किया गया है और इस सूत्र में वनस्पतिकाय का वर्णन है । सिर्फ इतना ही फर्क है । बाकी सारा अर्थ समान है॥४७॥ ३८)OOOOOOOOOOOOOOOOOOOOOOOOOOO| श्री आचारांग सूत्र
SR No.005843
Book TitleAcharang Sutram Pratham Shrutskandh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVikramsenvijay
PublisherBhuvan Bhadrankar Sahitya Prachar Kendra
Publication Year
Total Pages372
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati & agam_acharang
File Size9 MB
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